कांग्रेस 2014 के चुनावी मिशन में राहुल गांधी के ही नेतृत्व में उतरेगी. ये खुलासा हुआ है कांग्रेस के गुप्त चुनावी मसौदे से. कांग्रेस ने एजेंडा 2014 के नाम चुनावी मसौदा तैयार कर लिया है और इसके 30 पन्नों में से 3 पन्ने में सिर्फ राहुल गांधी के ही नेतृत्व का जिक्र है.
मसौदे में कहा गया है- 2014 में पार्टी को राहुल का नेतृत्व मिलेगा, हलांकि इसमें भी ये साफ नहीं किया गया कि राहुल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. यानी राहुल की पीएम उम्मीदवारी पर कांग्रेस का चुनावी मसौदा पूरी तरह खामोश है.
मसौदे में उम्मीद जताई गई है कि राहुल के नेतृत्व से युवाओं को जोड़ने में काफी मदद मिलेगी, पार्टी पूरी ताकत से मैदान में उतरेगी. कांग्रेस के एंजेडा 2014 में एक बात और खास है कि इस पर ओबामा के चुनाव प्रचार का काफी असर दिख रहा है. इसमें ओबामा के चुनाव प्रचार की तरह सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है.
कांग्रेस को राहुल से ही है उम्मीद
राहुल गांधी भले ही प्रधानमंत्री पद को लेकर सवाल को गैरजरूरी बताते हों, लेकिन कांग्रेस में इस बात को लेकर अब दो राय नहीं कि 2014 का लोकसभा चुनाव राहुल गांधी की ही अगुवाई में लड़ा जाएगा. विरासत में मिली सियासत को संभालने के कौशल को लेकर राहुल को भले ही सवालों के कटघरे में खड़ा किया जाता हो, लेकिन कांग्रेस को वोट के लिए राहुल के करिश्मे से ही है उम्मीद.
संगठन में भले ही उनकी हैसियत सोनिया गांधी के बाद दूसरे नंबर के नेता की हो, लेकिन कांग्रेस की चुनावी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ राहुल के इर्द गिर्द लड़ी जाएगी. कांग्रेस की स्ट्रेटजी कमेटी ने मिशन 2014 को लेकर अपना 30 पन्नो का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है, जिसमें राहुल की भूमिका से लेकर चुनावी रणनीति का ब्यौरा दिया गया है.
राहुल के लिए होगी इम्तिहान की घड़ी
नौ साल से राहुल गांधी सियासत में हैं. सिर पर गांधी नेहरू खानदान की विरासत का ताज है, बावजूद इसके उनकी करिश्माई छवि पर सवालिया निशान लगता रहा. जिस उत्तरप्रदेश को राहुल ने अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बनाई, उसी उत्तर प्रदेश ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को ऐसा झटका दिया कि पार्टी के लिए खुद के दम पर सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया. उत्तर प्रदेश के झटके के बाद राहुल देश भर में पार्टी के संगठन को और मजबूत करने में जुट गए, जिसके सबसे बड़े इम्तिहान का वक्त अब करीब आ गया.
डायरेक्ट कैश सब्सिडी बनेगी चुनावी मुद्दा
हाल में राहुल गांधी ने विकास का नया खाका देश के सामने रखा. देश के विकास के लिए सरकार की जगह आम आदमी को मजबूत करने की बात की. नौ सालों से सरकार चलाने वाली पार्टी के आला नेताओं में से एक होने के बावजूद सिस्टम की कमियों की खुल कर आलोचना की. सियासी संस्कृति में बदलाव पर जोर दिया लेकिन वोटरों को लुभाने की संस्कृति नहीं बदली. स्ट्रेटजी कमेटी के ड्राफ्ट में ये साफ कर दिया गया कि कांग्रेस चुनाव में डायरेक्ट कैश सब्सिडी को ही अपना चुनावी मुद्दा बनाएगी.
कांग्रेस ने जो अपनी चुनावी रणनीति तैयार की, उसमें सबसे अहम है राहुल गांधी को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर नहीं, पार्टी नेता प्रोजेक्ट करने की योजना, सबसे बड़ी पार्टी बनने का लक्ष्य और क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ को लेकर रणनीति तैयार करना. हालांकि मध्यावधि चुनाव का राग अलाप रही बीजेपी ने कांग्रेस की चुनावी तैयारियों को सियासी स्टंट करार दिया.
यूपीए का कुनबा बढ़ाने की कवायद शुरू
यूपीए का कुनबा बढ़ाने की कवायद कांग्रेस ने शुरू कर दी. ममता बनर्जी को फिर से अपने पाले में लाने के लिए सरकार ने पश्चिम बंगाल के लिए इस साल फंड 22 हजार करोड़ से 30 हजार करोड़ रुपए करने का फैसला किया. कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या उत्तर प्रदेश में है. सूत्रों की माने तो कांग्रेस यूपी में समाजवादी पार्टी और बीएसपी को छोड़ कर ज्यादातर छोटे दलों को अपने झंडे तले लाने की कोशिश में है, तो बिहार में एक बार फिर लालू-पासवान के साथ चुनावी समझौता हो सकता है. इसके अलावा तमिलनाडु में कांग्रेस गलतफहमियों को दूर कर डीएमके साथ फिर से चुनाव लड़ने की जुगत में है.
क्या 2013 में ही लोकसभा चुनाव हो जाएंगे?
अब सवाल ये है कि आखिर चौदह महीने पहले ही कांग्रेस चुनावी तैयारियों में क्यों जुट गई? क्या इन तैयारियों में जल्द चुनाव की आहट है? क्या 2013 में ही लोकसभा चुनाव हो जाएंगे? जिस तरह से 2014 में कांग्रेस की जीत का ट्रंप कार्ड कही जाने वाली तीन योजनाओं डायरेक्ट कैश सब्सिडी, गरीबों को रोटी की गारंटी देने वाले खाद्य सुरक्षा और किसानों को फायदा पहुंचाने वाले भूमि सुधार कानून को लागू कराने की हड़बड़ी है, उससे साफ है कि चुनावों की तारीखो को लेकर सरकार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती.
क्या करिश्मा दिखाएगा राहुल का नेतृत्व?
क्या राहुल गांधी राजनीति के पक्के खिलाडी बन चुके हैं, जिनके सहारे कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब होगी? सवाल जितना आसान है, जबाव उतना ही पेचीदा. राहुल गांधी नेहरू खानदान के ऐसे वारिस हैं, जिन्हें गठबंधन के दौर में सबसे मुश्किल चुनावी इम्तिहान से गुजरना होगा. दस साल तक सरकार चलाने वाली कांग्रेस को लेकर वोटरों की नाराजगी कम करने की रणनीति तैयार करनी होगी. जिस महंगाई ने आम लोगों का निवाला छीन लिया, उन्हीं वोटरों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करनी होगी. सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनाव से पहले और चुनाव के बाद संसदीय अंकगणित के लिए आंकड़ों की अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा. पुराने सहयोगियों को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी होगी, तो नए साथियों की तलाश में हाथ बढ़ाना होगा.