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मोदी विरोधियों का मजबूत होना, बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए सिरदर्द

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गोलबंदी की कोशिशों में लगी कांग्रेस के लिए फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों ने उत्तर प्रदेश की सियासी राह में और मुश्किल कर खड़ी कर दी है. उत्तर प्रदेश में सपा की कोशिशों में बसपा साथ थी लेकिन कांग्रेस नहीं.

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राहुल गांधी, अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती
राहुल गांधी, अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती

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मोदी विरोधी क्षत्रप एकजुट हो रहे हैं. यूपी में सपा और बसपा 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक हुए तो फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में बीजेपी को ध्वस्त कर दिया. सूबे की दोनों सीटों पर बीजेपी की हार और सपा को जीत मिली है, लेकिन कांग्रेस अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी. इसके बावजूद कांग्रेस इस बात से खुश है कि बीजेपी को हार मिली है. लेकिन क्षत्रपों की एकजुटता बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है.

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गोलबंदी की कोशिशों में लगी कांग्रेस के लिए फूलपुर और गोरखपुर के नतीजों ने उत्तर प्रदेश की सियासी राह में और मुश्किल कर खड़ी कर दी है. उत्तर प्रदेश में सपा की कोशिशों में बसपा साथ थी लेकिन कांग्रेस नहीं. यूपी की दो सीटों के लिए एकला चलो की राह पर निकली कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है. इतना ही नहीं दोनों सीटों पर कांग्रेस का 60 फीसदी वोट भी घट गया है. बिहार के भभुआ विधानसभा चुनाव में भी उसे हार मिली.

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2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए उपचुनाव में किया गया सपा-बसपा का प्रयोग सफल रहा. इसे विपक्षी गोलबंदी का पहला प्रयोग माना जा रहा है. उपचुनाव में जिस तरह से बीजेपी के मजबूत दुर्ग गोरखपुर में सपा को जीत मिली है. इससे अखिलेश यादव के हौसले बुलंद हो गए हैं. वहीं बिहार में एक अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा उपचुनाव में आरजेडी की जीत से लालू की सियासी विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव भी गदगद हैं.

उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीट पर बसपा के समर्थन से सपा की जीत पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुशी जाहिर की. राहुल ने बुधवार को ट्वीट कर कहा कि नतीजों से स्पष्ट है कि मतदाताओं में बीजेपी के प्रति बहुत क्रोध है और वो उस गैर भाजपाई उम्मीदवार के लिए वोट करेंगे, जिसके जीतने की संभावना सबसे ज़्यादा होगी. कांग्रेस यूपी में नवनिर्माण के लिए तत्पर है, ये रातो-रात नहीं होगा.

उपचुनाव में बीजेपी की हार से विपक्ष को जीत का फार्मूला मिल गया है. 2019 के चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए विपक्षी दल एकजुट हो सकते हैं. मोदी विरोधी एकजुट होने की कवायद कर रहे हैं. कांग्रेस भी इसी कवायद में जुटी है. उपचुनाव के नतीजे से एक दिन पहले यूपीए चेयरमैन और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों को डिनर पर बुलाया था.

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महागठबंधन बनने पर मोदी के मुकाबले चेहरा कौन होगा, ये विपक्ष के बीच बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर तलाश कर पाना आसान नहीं है. कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रही. वहीं विपक्ष के क्षत्रप जो कांग्रेस के संभावित सहयोगी दल हैं, वो फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य किसी नेता को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करने को राजी नहीं हैं.

दरअसल क्षत्रप की अपनी सियासी ताकत है. यूपी में 80 लोकसभा, पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40 और तमिलनाडु में 39 सीटें हैं. कुल मिलाकर करीब 201 लोकसभा सीटें हैं और कांग्रेस इन चारों राज्यों में जूनियर पार्टनर (सपा, बसपा, टीएमसी, वामदल, आरजेडी और डीएमके) के तौर पर है. ऐसे में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की मर्जी पर निर्भर रहना पड़ेगा. कांग्रेस की मांगी मुराद इन राज्यों पूरी होने वाली नहीं है बल्कि क्षेत्रीय दलों के रहमोकरम पर ही निर्भर रहना पड़ेगा.

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर जिस दिन राहुल गांधी की ताजपोशी हो रही थी, उस समय आरजेडी नेता तेजस्वी यादव उन्हें 2019 में पीएम बता रहे थे, लेकिन तीन महीने के बाद जब सोनिया के डिनर पार्टी से बाहर निकले तो राहुल को 2019 का पीएम उम्मीदवार बताने से गुरेज करते दिखे. इसका मतलब साफ है कि 2019 में राहुल कांग्रेस का चेहरा तो हो सकते हैं लेकिन विपक्ष का होंगे, ये कहना मुश्किल है.

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