भारत के मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज किए जाने के मसले को कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में जाने की तैयारी कर रही है. आजतक से बातचीत में राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी ने कहा कि अब इस मामले पर न्यायालय की शरण में जाने का एक रास्ता बचा है. इस दौरान तुलसी ने मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को वेंकैया नायडू द्वारा खारिज किए जाने को भी गलत बताया.
उन्होंने कहा, ''मैंने महाभियोग प्रस्ताव पर राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के फैसले को देखा है. मेरे विचार से यह ठीक नहीं है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया का प्रावधान है.'' तुलसी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 124 के मुताबिक संसद के सदन में वोटिंग के बाद महाभियोग प्रस्ताव को राष्ट्रपति के समक्ष पेश करना होता है.
इसमें यह देखना होता है कि न्यायमूर्ति के खिलाफ कदाचार साबित है या नहीं. इसके बाद Judges Inquiry Act हैं, जिसमें कई नियम हैं. इसमें गवाह बुलाने और दस्तावेज जुटाने की प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायमूर्ति के खिलाफ महाभियोग को लेकर संसद की कमेटी अपनी रिपोर्ट देती है. तुलसी ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव देने के समय ही सारे सबूत दिए जाने का तर्क ठीक नहीं है. सांसदों के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि पहले पूरा ट्रायल करके सबूत लिए जाएं. गवाहों को हम बुला भी नहीं सकते हैं.
उन्होंने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव को प्रीमेच्योर बताना संविधान के तहत पूरी तरह गलत है. केटीएस तुलसी का कहना है कि राज्यसभा के सभापति नायडू ने महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करते हुए जो कारण बताए गए हैं, वो वह वैध नहीं है. इसके इंटरप्रिटेशन करने में गलती हुई है. कमेटी और भी अभी सबूत देख सकती थी, लेकिन उन्होंने इस पर विचार नहीं किया. केटीएस तुलसी ने कहा कि हम इस पर आगे की रणनीति पर विचार करेंगे? साथ ही भारत के मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अदालत में किसी भी मामले में पेश नहीं होंगे.
तुलसी ने कहा कि हम बीजेपी की शान के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते हैं. इस प्रस्ताव को खारिज किए जाने की पहले से ही योजना थी. हालांकि यह महाभियोग प्रस्ताव काफी मजबूत था. इस पर कार्रवाई होनी चाहिए थी.