पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने कोयला आयात के मामले में 29 हजार करोड़ रुपये का घोटाला खोज निकाला है. जहां दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका इस घोटाले की एसआईटी जांच की मांग कर रही है, वहीं जयराम रमेश ने दावा किया है कि अडानी समूह के खिलाफ सभी सबूत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सिंगापुर ब्रांच में मौजूद है.
जयराम रमेश ने दावा किया कि केन्द्रीय सचिव हंसमुख अधिया ने एसबीआई की पूर्व चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य को एक खत लिखते हुए सिगापुर ब्रांच से इस सबूत को मंगाने की बात कही थी. 20 मई 2016 को लिखे गए इस पत्र के जवाब में चार दिन बाद सिंगापुर से एसबीआई ब्रांच का जवाब दिया गया कि सिंगापुर के कानून के मुताबिक यह दस्तावेज किसी को नहीं दिए जा सकते हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा कि आखिर जब भारतीय कंपनी और भारतीय बैंक के बीच इस घोटाले को अंजाम दिया गया, तो कैसे मामले को सिंगापुर के कानून के तहत देखा जा रहा है. जयराम रमेश ने कहा कि बीते तीन साल के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन बार सिंगापुर गए लेकिन जांच को आगे बढ़ाने के लिए यह दस्तावेज सिगापुर से नहीं लाया जा सका.
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जयराम रमेश ने दावा किया कि इस दौरान अडानी समूह के गौतम अडानी सिंगापुर की अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए गुहार लगाते हैं कि मामले से जुड़े दस्तावेज भारत सरकार को न दिए जाएं. जिसके बाद कुछ महीनों तक सिंगापुर हाईकोर्ट ने सुनवाई की लेकिन डेढ़ महीने पहले गौतम अदानी की याचिका को अस्वीकार कर दिया.
रमेश ने बताया कि अब अडानी बाम्बे हाईकोर्ट में याचिका लेकर गए हैं और गुहार लगाई है कि डीआरआई के लेटर रोगेटरी को मंजूरी न दी जाए. गौरतलब है कि इस मामले में बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है. ऐसे कांग्रेस पार्टी ने मांग की है कि केन्द्र सरकार को किसी बड़े वकील को नियुक्त करते हुए हाईकोर्ट में अडानी की याचिका का विरोध करना चाहिए जिससे 29,000 करोड़ रुपये के उस घोटाले से पर्दा उठाया जा सके.
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि अडानी समूह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपनी नजदीकी के चलते कई जांच को प्रभावित करने का काम कर चुके हैं. रमेश के मुताबिक पिछले दो तीन साल में जब कहीं अडानी कंपनी के बारे में जांच शुरू हुई तो केन्द्र सरकार ने जल्द से जल्द उस जांच को बंद करा दिया है. रमेश ने दावा किया कि पावर उपकरण के आयात का पहला मामला डीआरआई की एक नोटिस से सामने आया. इस मामले में डीआरआई ने लगभग 6600 करोड़ के घोटाला की बात कही थी. 2014 में डीआरआई ने कहा कि जिस मूल्य पर पावर उपकरण का आयात होना चाहिए था उससे 6600 करोड़ रुपये अधिक दिया गया. लेकिन यह मामला बंद कर दिया गया.