देश में 10 साल और दिल्ली में 15 साल सरकार चलाने के बाद कांग्रेस अब विरोध की राजनीति कर रही है. नई सरकार आए अभी महीना भर भी नहीं हुआ है कि पार्टी विरोध प्रदर्शन से लेकर तमाम तरह की बयानबाजी पर उतर आई है. इनमें ज्यादातर वे नेता हैं जो चुनाव जीत नहीं पाए. दिल्ली में बिजली की कमी से परेशान लोगों की तकलीफ दूर करने के लिए ये नेता सड़कों पर उतर आए हैं. धरना-प्रदर्शन वगैरह धड़ल्ले से हो रहा है. अपने आपसी गिले-शिकवे भुलाकर ये नेता आपस में गलबहियां कर रहे हैं. पानी-बिजली की कमी को वे इस शिद्दत से उठा रहे हैं जैसे कि वह बीजेपी की नई सरकार की देन हो. वे यह भूलने का स्वांग कर रहे हैं कि इतने सालों तक दिल्ली और केन्द्र की सरकार उन्होंने ही चलाई है और अगर कुछ गलत हो रहा है तो यह उनकी ही देन है.
दिल्ली में बिजली का निजीकरण कांग्रेस की ही तो देन है जिसके बारे में इतनी आवाजें उठाई जा रही हैं. अगर इस व्यवस्था में कोई कमी है तो उसके लिए सीधे तौर पर वे ही जिम्मेदार हैं. लेकिन राजनीति के खेल निराले हैं. यहां सच झूठ हो जाता है और सही को गलत ठहरा दिया जाता है. कांग्रेस भी ऐसा कर रही है, उसके नेता एक तरह से अपनी तमाम गड़बड़ियों को नई सरकार पर थोपने की तैयारी में लगे हुए हैं. कल तक तो ये मुद्दे उनके लिए मायने नहीं रखते थे और आज ये बड़े बन गए हैं. कांग्रेस के इस अचानक से बदले रुख से बीजेपी उतनी परेशान नहीं है जितनी आम आदमी पार्टी. राज्य और देश में विरोध का स्वर उठाने वाली यह पार्टी सकते में आ गई है. उसे यकीन नहीं था कि कांग्रेस इतनी जल्दी उनसे यह श्रेय छीन लेगी और विरोध का प्रतीक बन जाएगी. लेकिन पार्टी यह समझने की कोशिश नहीं कर पा रही है कि ऐसा क्यों हुआ.
दरअसल अभी तक वह अतीत से निकल नहीं निकल पाई है. उसे लगता है कि उसकी जगह सुरक्षित है और विरोध का स्वर मुखर करने का विशेषाधिकार सिर्फ उसका ही है. लेकिन केजरीवाल को यह आभास नहीं हो पा रहा है कि वक्त काफी बदल चुका है और लोग भी. यहां पर अब अस्तित्व की लड़ाई है, उन्हें फिर से अपने को साबित करना होगा.
.बहरहाल अब देखना है कि इस नई चुनौती से पार्टी कैसे निपटती है. कांग्रेस डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी है और सत्ता में रहने के गुर जानती है. वह संगठित भी है और उसके पास भरपूर संसाधन भी हैं. पराजित और परास्त आम आदमी पार्टी का सीधा मुकाबला उससे ही है.
सच यह है कि कांग्रेस के नेता अब फिर से मैदान में आने की कोशिश कर रहे हैं और विपक्ष की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यह भी उतना सच है कि कुछ धरना-प्रदर्शन से वे कुछ खास तो नहीं कर पाएंगे, बस अपने को राजनीति में 'जीवित' रख पाएंगे क्योंकि आज जो कुछ गलत हो रहा है उसकी नींव उन्होंने ही रखी थी.