कल तक एनडीए कुनबे का अहम घटक दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) कांग्रेस के लिए राजनीतिक तौर पर अछूत था. क्योंकि सवाल था धर्मनिरपेक्षता का. पर जैसे ही नरेंद्र मोदी के मुद्दे पर नीतीश ने बीजेपी साथ छोड़ा, कांग्रेस अपने कुनबे को और मजबूत करने के लिए जेडीयू पर डोरे डालने लगी.
एक दिन के अंदर ही कांग्रेस के लिए जेडीयू नेता धर्मनिरपेक्ष हो गए और विचारधारा भी मेल खाने लगी.
दरअसल, नीतीश कुमार को साधने की शुरुआत तो एनडीए गठबंधन टूटने से पहले ही हो गई थी. पर यह कोशिश परवान तब चढ़ी जब जेडीयू ने अपनी राहें बीजेपी से अलग कर लीं. दोनों पार्टियों में तलाक रविवार को हुआ और सोमवार को कांग्रेस नए रिश्ते की ओर कदम बढ़ा दिए.
शुरुआत हुई बिहार कांग्रेस से. राज्य के कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने नीतीश कुमार पर अपना रुख नरम करते हुए कहा, 'जेडीयू के फैसले का स्वागत है. नीतीश को यह फैसला तो पहले ही करना चाहिए था. लेकिन, अब यह साफ है कि कम से कम मोदी के मुद्दे पर हमारी पार्टी के विचार बिहार के मुख्यमंत्री से मेल खाते हैं.'
इसके बाद केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद की बारी थी. उन्होंने तो जेडीयू नेताओं को धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट दे डाला. उन्होंने कहा, 'जेडीयू के नेता धर्मनिरपेक्ष हैं. अच्छा है कि जेडीयू ने अपना रास्ता चुना. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि वे बीजेपी के साथ गए भी क्यों?'
नेताओं के बाद बारी आई कांग्रेस दफ्तर की. कांग्रेस के मीडिया सेल के नए प्रभारी अजय माकन ने तो इशारों में यह तक कह डाला कि यूपीए के दरवाजे जेडीयू के लिए खुले हैं.
एनडीए गठबंधन टूटने के बारे में अजय माकन ने कहा, 'यह महज संयोग नहीं है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस मजबूत हो रही है और एनडीए का कुनबा छोटा.'
अजय माकन ने कहा, 'जहां तक गठबंधन का सवाल है तो इसपर एके एंटनी कमेटी विचार करेगी. हमलोग समान विचारधारा और धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के साथ मिलकर चलना चाहते हैं.'
उन्होंने कहा, 'इसमें कोई दो राय नहीं है कि जो बिहार में हुआ उसका असर देश की राजनीति पर भी होगा और हम इस घटनाक्रम पर पैनी नजर बनाए हुए हैं.'
इशारें साफ हैं. कांग्रेस को अब नीतीश से परहेज नहीं है. तकाजा भी राजनीति का है. क्योंकि सियासत में दुश्मन का दुश्मन तो दोस्त ही होता है.