पूर्व पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने कहा है कि उनकी पार्टी केवल विपक्ष में होने के नाते भूमि अधिग्रहण विधेयक का विरोध नहीं कर रही और यह विषय केवल राजनीतिक नहीं है.
जयराम रमेश ने नये संशोधित भूमि विधेयक में रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजनाओं के लिए सहमति और सामाजिक प्रभाव आकलन के संबंध में केन्द्र सरकार के दावों को खारिज कर दिया.
रमेश ने कहा, ‘कांग्रेस नीत यूपीए सरकार द्वारा 2013 में लाया गया भूमि विधेयक समग्र था, लेकिन भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तावित नये संशोधन किसी भी तरह से किसानों के फायदे के नहीं हैं बल्कि किसान-विरोधी हैं.’ उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार संशोधनों के संबंध में झूठ बोल रही है और रक्षा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजनाओं के लिए सहमति, सामाजिक प्रभाव आकलन का कोई प्रावधान नहीं है.
उन्होंने इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के किसी एक तरफ एक किलोमीटर का इस्तेमाल निजी पक्षों द्वारा किये जा सकने के प्रावधान के माध्यम से भूमि माफियाओं को बढ़ावा दिये जाने का आरोप लगाते हुए इस संबंध में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की आलोचना की.
उनका कहना है कि मोदी सरकार दावा कर रही है कि यूपीए के भूमि अधिग्रहण कानून से 80 फीसदी किसानों की सहमति न मिलने के कारण रक्षा और सिंचाई की परियोजनाएं लटकीं. सच्चाई यह है कि 2013 का कानून रक्षा मंत्रालय को पूरी छूट देता है. सरकारी सिंचाई प्रॉजेक्ट्स के लिए अनुमति का प्रावधान नहीं है. यह व्यवस्था निजीकरण और पीपीपी मॉडल पर लागू होती है.
बता दें कि रविवार को रामलीला मैदान पर कांग्रेस की 'किसान, खेत मजदूर' रैली सुबह साढ़े 10 बजे से शुरू होगी. इसमें पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी भी मौजूद रहेंगे.
वैसे भूमि अधिग्रहण बिल मोदी सरकार के लिए मुसीबत बन चुका है. कांग्रेस समेत सारे विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. एक ओर जहां कांग्रेस 'किसानों के हक की आवाज' उठाते हुए 19 अप्रैल को रैली करने जा रही है, वहीं दूसरी ओर पार्टी ने ज्यादा से ज्यादा किसानों का समर्थन जुटाने के लिए 'जमीन वापसी' कैंपेन भी शुरू कर दिया है.
इस कैंपेन के तहत कांग्रेस ने zameenwapsi.com नाम की वेबसाइट भी लॉन्च की है, जिसके जरिए किसान अपनी शिकायतें दर्ज करा सकेंगे.
- इनपुट भाषा