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जारी है ‘भैया मान जाओ, मान जाओ’ की रट, लेकिन नहीं मान रहे राहुल गांधी

बंद कमरे में हुई बैठक में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और शशि थरूर ने तर्क देते हुए राहुल से कहा, 'ज़िम्मेदारी किसी एक की नहीं बल्कि सामूहिक है, इस वक़्त पार्टी को आपकी सबसे ज़्यादा जरूरत है. आपके सिवा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए आपको अध्यक्ष बने रहना चाहिए.'

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)

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‘द ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ का बुरा दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. इस वक्त कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि पार्टी अध्यक्ष पद की कमान संभाल कर कौन पार्टी को राजनीतिक भंवर से पार लगाए. सूत्रों के मुताबिक, बुधवार को फिर राहुल गांधी ने पार्टी की लोकसभा संसदीय दल की बैठक में साफ कर दिया कि वो अध्यक्ष पद पर नहीं बने रहेंगे. सोनिया गांधी की मौजूदगी में ये बैठक संसद भवन परिसर में हुई.

इससे ठीक पहले राहुल के दिल्ली स्थित निवास ‘12, तुगलक लेन’ पर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष केशव यादव और उपाध्यक्ष बीएस श्रीनिवासन की अगुवाई में युवा कार्यकर्ताओं ने इकट्ठा होकर राहुल गांधी से अध्यक्ष बने रहने का आग्रह किया था.

दूसरी तरफ, संसद भवन परिसर के पार्टी दफ्तर में सोनिया गांधी की मौजूदगी में पार्टी के लोकसभा सांसदों ने राहुल से पद पर बने रहने की अपील की.

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अध्यक्ष पद छोड़ने पर अड़े राहुल गांधी

सूत्रों के मुताबिक, बंद कमरे में हुई बैठक में पार्टी सांसद मनीष तिवारी और शशि थरूर ने तर्क देते हुए राहुल से कहा कि, 'ज़िम्मेदारी किसी एक की नहीं बल्कि सामूहिक है, इस वक़्त पार्टी को आपकी सबसे ज़्यादा जरूरत है. आपके सिवा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए आपको अध्यक्ष बने रहना चाहिए.'

लेकिन राहुल अपनी बात पर अड़े रहे और साफ कर दिया कि, 'मैं फैसला कर चुका हूं, मैं हार की जिम्मेदारी लेकर पद पर नहीं रहूंगा.'

बैठक के बाद राहुल गांधी से जब सवाल किया गया कि, 'महीना हो गया, आप पार्टी अध्यक्ष पर रहेंगे या नहीं?'  इस पर राहुल ने दो टूक कहा कि, 'मैंने अपना फैसला आज बैठक में बता दिया है, मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं रहूंगा.'

राहुल का ये जवाब सुनकर बैठक में मौजूद सभी सांसद सन्न थे. कोई भी इस मुद्दे पर आधिकारिक तौर बोलने से बचता नजर आया. दरअसल, सभी ये आस लगाए बैठे थे कि, महीने भर से ज़्यादा हो गया, देश भर के कांग्रेसी नेताओं द्वारा राहुल से पद पर बने रहने की अपील की गई, ऐसे में सभी उम्मीद लगाए बैठे थे कि, राहुल आखिरकार मान जाएंगे. लेकिन राहुल का ताजा रुख के बाद सभी का मायूस होना लाजिमी है.

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23 मई 2019 को लोकसभा के नतीजे आए तो कांग्रेस की लगातार दूसरी बार बड़ी हार हुई. राहुल गांधी समेत पार्टी को इस बार ऐसी हार की उम्मीद नहीं थी. नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लंबे अर्से से, खास तौर पर राफेल डील पर, मुहिम चलाने के बावजूद बीजेपी को 2014 के मुकाबले ज्यादा सीट मिलीं और दोबारा पूर्ण बहुमत से मोदी सरकार सत्ता में आई.

राहुल गांधी की पार्टी से दूरी?...

राहुल ने ऐसी परिस्थिति में हार की जिम्मेदारी खुद लेकर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश कर दी. इतना ही नहीं कार्यसमिति की बैठक में राहुल ने यहां तक कह दिया कि, आप लोग गांधी परिवार से बाहर अध्यक्ष चुनिए यानी सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए न लें. हालांकि तबतक कार्यसमिति ने राहुल के इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था. कार्यसमिति में सभी ये मानकर चल रहे थे कि, 2014 में सोनिया की तर्ज पर राहुल देर सबेर मान जाएंगे.

राहुल लगातार कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़े हुए थे, तब नेताओं ने विकल्प न मिलने की बात कहकर उनसे दोबारा मिलकर पद पर बने रहने की गुजारिश की. तब भी राहुल ने दोहरा दिया था कि, 'आप लोग गैर गांधी अध्यक्ष खोजिए, बस तभी तक मैं पद पर बना हूं. इस बीच राहुल ने बतौर अध्यक्ष कांग्रेस की नई नियुक्तियों के कागजों पर दस्तखत करना भी बंद कर दिया. पहले जो नियुक्तियां राहुल गांधी के अप्रूवल से होती थीं, अब उनकी जगह ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के नाम से होने लगीं. प्रेस रिलीज भी कुछ इसी तरह जारी होने लगीं.

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ऐसे में राहुल के ताजा रुख ने पूरी पार्टी को सकते में डाल दिया. कोई पार्टी नेता खुद को या किसी और का नाम सुझाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा, ऐसे में अगर राहुल नहीं तो पार्टी अध्यक्ष कौन? कांग्रेस के लिए यही यक्ष प्रश्न है जिसके सुलझने के लिए पार्टी गांधी परिवार से ही कोई इशारा मिलने की उम्मीद लगाए बैठी है.

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