राफेल डील पर मचे राजनीतिक घमासान के बीच केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर रक्षा सौदे से जुड़ी जानकारी बंद लिफाफे में कोर्ट के साथ साझा की. इसके अलावा सरकार के वकील की ओर से कुछ दस्तावेज इस मामले में याचिकर्ताओं के साथ भी साझा किए गए हैं. कांग्रेस पार्टी ने सरकार की ओर से दायर इस हलफनामे पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह हलफनामा डील के बारे में बताता कम है छुपाता ज्यादा है.
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हलफनामे पर मोदी सरकार से 5 बुुनियादी सवाल पूछे हैं. उन्होंने कहा कि पहले जब 126 राफेल विमान खरीदने की प्रक्रिया खत्म नहीं हुई थी तो उससे पहले ही सरकार ने 36 विमान खरीदने का फैसला कैसे कर लिया. उन्होंने कहा कि सरकार के हलफनामे के मुताबिक यह दोनों प्रक्रियाएं अलग थीं, तो क्या सरकार ने 36 विमान की खरीद से पहले वायुसेना से गुणवत्ता संबंधी मानकों को तय करने संबंधी कोई पेशकश मांगी थी.
मनीष तिवारी ने कहा कि क्या 36 विमानों की खरीद से पहले रक्षा मामलों की समिति की बैठक हुई थी और अगर बैठक हुई तो उसमें क्या फैसला लिया गया था. क्या सरकार ने विमानों की खरीद से पहले सभी जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा किया था. तिवारी ने कहा कि जून 2015 में 36 विमानों की जरूरत बताई जाती है लेकिन सरकार इससे तीन महीने पहले ही 36 विमान खरीदने का एलान कर देती है, इससे डील को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. साथ ही यह भी साफ है कि फैसला पहले हो गया था और बाद में उसे अमलीजामा पहनाने के लिए प्रक्रिया बैठाई गई.
कीमत पर कांग्रेस के सवाल
कांग्रेस ने डील पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार के तमाम मंत्री लगातार यह करते आए हैं कि विमान में अस्त्र-शस्त्र लगवाने से उनकी कीमत बढ़ गई है, ये सामान यूपीए की ओर से खरीदे जाने वाले विमानों में नहीं लगने थे. तिवारी ने कहा कि यह बयान सरकार के हलफनामे के बिल्कुल विपरीत है. क्योंकि हलफनामे में सरकार ने बताया है कि विमान ठीक वैसे ही हैं जैसे वायुसेना की मांग पर 126 विमान खरीदे जाने थे. तो जो विमान 526 करोड़ में आना था और बिना किसी बदलाव के उसकी कीमत 1670 करोड़ कैसे हो गई, सरकार बताए कि ये 1100 करोड़ रुपये कहां गए.
कांग्रेस ने सवाल उठाए कि इंडिया ऑफसेट पार्टनर को लेकर भी बहुत बड़ा पेंच है. उन्होंने कहा कि सरकार ने रिलायंस को पार्टनर बनवाने के लिए प्रक्रिया को पूरी तरह बदल दिया क्योंकि पहले रक्षा मंत्रालय और भारत सरकार इंडिया ऑफसेट पार्टनर तय करती थी लेकिन सरकार ने यह जिम्मा दसॉल्ट को दे दिया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सरकार को मालूम था कि रिलायंस के पास इस डील का पार्टनर बनने की काबिलियत नहीं है और सरकार के लिए कंपनी को मंजूरी देना मुश्किल था.
कोर्ट में सरकार का खुलासा
केन्द्र सरकार ने 36 राफेल विमानों की खरीद के संबंध जो भी फैसले लिए गए हैं, उन सभी की जानकारी याचिकाकर्ता को सौंप दी है. राफेल विवाद से जुड़ी याचिका वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी. केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कुल 9 पेज के दस्तावेज सौंपे हैं, जिनमें इस डील का पूरा इतिहास, प्रक्रिया को समझाया गया है.
सरकार ने दस्तावेजों में कहा है कि उन्होंने राफेल विमान रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 के तहत इस खरीद को अंजाम दिया है. विमान के लिये रक्षा खरीद परिषद की मंजूरी ली गई थी, भारतीय दल ने फ्रांसीसी पक्ष के साथ बातचीत की.