कांग्रेस के अपने ही विरोधाभास खत्म होने का नाम नहीं ले रहे. कांग्रेस नेताओं की तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में कांग्रेस में सारे फैसले रुके पड़े हैं. यहां तक कि पार्टी के प्रवक्ता तक तमाम मसलों पर चुप्पी साधना ही बेहतर समझ रहे हैं. मीडिया विभाग भी बस नाम के लिए काम कर रहा है.
पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी गाहे बगाहे ही हो रही हैं. भविष्य में क्या होगा, इसको लेकर सभी चिंता में हैं. सूत्रों की मानें तो अब तक कई राज्यों में पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति हो जानी चाहिए थी. साथ ही हार के बाद उभरने के लिए नए सिरे से रणनीति तय करके आगे बढ़ना चाहिए था.
महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन पार्टी शांत बैठी है. ऐसे में पार्टी अब आगे बढ़ने के सिलसिले में विचार करने को मजबूर हुई है.
दरअसल, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल ने पद छोड़ने की बात की थी, जिसे कार्यसमिति ने सिरे से खारिज कर दिया. लेकिन राहुल अपनी बात पर अड़ गए, बाद में कांग्रेस के नेताओं ने राहुल से कहा कि, ‘आपका विकल्प नहीं’ तो भी राहुल की ओर से गांधी परिवार के बाहर से अध्यक्ष खोजने की बात की जाती रही. राहुल जब तक अध्यक्ष के लिए ऐसा शख्स नहीं मिलता, तभी तक पद पर बने रहने को माने.
हालांकि, इस बीच राहुल ने पार्टी की नई नियुक्तियों के खत पर दस्तखत करना भी बंद करके साफ कर दिया कि वो पद पर नहीं रहेंगे. इसीलिए नई नियुक्तियां ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अनुमोदन से होने लगीं, जबकि पहले कांग्रेस अध्यक्ष के नाम से होती थीं.
अब दिक्कत ये है कि, राहुल की जगह नए अध्यक्ष के नाम पर खुद का या किसी और का नाम सुझाकर कोई गांधी परिवार के सामने विलेन बनना नहीं चाहता. गलियारों में दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील कुमार शिंदे, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और युवा चेहरे में राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के नाम चर्चा में आते हैं, लेकिन खुले तौर पर किसी भी अहम फोरम पर अध्यक्ष पद पर सिवा राहुल के बने रहने के अलावा कोई बात नहीं करता.
हालांकि, पार्टी के पूर्व सचिव और एक्स सर्विसमैन सेल में रह चुके प्रवीण डावर का कहना है कि, ‘कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को गांधी परिवार की ओर ही देखने की आदत है, ऐसे में वो कार्यसमिति से गुजारिश करते हैं कि राहुल को पद पर बने रहने के लिए मनाया जाए, फिर भी नहीं मानते तो दोबारा सोनिया गांधी को अध्यक्ष बना दिया जाए और उनके सहयोग के लिए दो-तीन कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति की जाए.’
जाहिर है कि कांग्रेस में बेचैनी बढ़ती जा रही है. सूत्रों के मुताबिक, जल्दी ही कार्यसमिति की एक और बैठक बुलाई जाएगी, जिसमें राहुल को एक और बार मनाने की कोशिश की जाएगी. लेकिन अगर फिर भी राहुल नहीं माने तो नई व्यवस्था पर औपचारिक बात शुरू की जाएगी. इस बीच कयासबाजी के दौर लगातार चलते रहेंगे, जिसका नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ सकता है.