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कर्नाटक की एक योजना बनी मोदी की GST के लिए रोल मॉडल

कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक को लेकर राजनीतिक स्तर भाजपा और कांग्रेस में जमकर बहस छिड़ी हो, लेकिन इस राज्य की एक योजना ने केंद्र और अन्य राज्यों को बड़ा राहत दी है, जिसे बाकी राज्य भी स्वीकार कर रहे हैं.

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

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कांग्रेस के लिए कर्नाटक ही बड़ा सहारा है, जिन चंद राज्यों में उसकी सरकार है उसमें यह बड़ा राज्य है. सिद्धारमैया सरकार की एक स्कीम एनडीए सरकार की महत्वाकांक्षी आर्थिक सुधार कार्यक्रम जीएसटी की तुलना में राजस्व में बढ़ोतरी के लिए ज्यादा बेहतर विकल्प बनती दिख रही है.

अपने खास ई-वे बिल सिस्टम की वजह से वह केंद्र सरकार और अन्य राज्यों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया है. कर्नाटक में इसी साल चुनाव होने हैं लेकिन चुनावी समय के बावजूद उसकी यह खास स्कीम व्यापारियों के लिए बड़ी राहत बन सकती है.

कर्नाटक ने व्यापारियों की समस्या को देखते हुए इलेक्ट्रानिक वे बिल या ई-वे बिल सिस्टम की शुरुआत की है, इस व्यवस्था के जरिए जिस तरह से राज्यभर में 10 किमी से दूर 50 हजार की कीमत से ज्यादा के सामान को भेजा जा सकता है, उसी तरह दूसरे राज्यों में भी ट्रेडिंग की जा सकती है.

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सिंतबर में किया गया लागू

गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को केंद्र सरकार ने पिछले साल के मध्य में लागू किया था, लेकिन अक्टूबर से मासिक आय में लगातार गिरावट आ रही है, और लक्ष्य के मुताबिक 91,000 करोड़ से कम की आय हुई है. यह केंद्र में मोदी सरकार और भाजपा शासित राज्यों के लिए भी चिंता का बड़ा कारण बनता जा रहा है. इसलिए राजनीतिक स्तर पर विरोध के बावजूद कर्नाटक की ई-वे बिल सिस्टम को स्वीकार कर रहे हैं.

अक्टूबर में जीएसटी काउंसिल की बैठक में ई-वे बिल की बात सामने आई थी. तब कर्नाटक ने सुझाव दिया था कि ई-वे बिल सिस्टम को एक राज्य से बाहर ले जाया जाए और 4-5 राज्यों को इसमें जोड़ा जाए, फिर राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू किया जा सकता है.

कर्नाटक ने 12 सितंबर, 2017 को ई-वे बिल की शुरुआत की थी. इसे लागू करने से पहले अगस्त, 2017 में राज्य में ही इसे डिजाइन और डेवलप किया गया, फिर इसे प्रयोग के तौर पर लागू किया गया.

'बेहद आसान है यह सिस्टम'

इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक, सिस्टम में हर दिन एक लाख से ज्यादा लोग ई-वे बिल जनरेट कर रहे हैं. 1 लाख 20 हजार डीलर्स और 947 ट्रांसपोर्ट्स इस सिस्टम के तहत रजिस्टर्ड हो चुके हैं.

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कर्नाटक में ई-वे बिल की तरह ही ई-सुगम (सिंपल अपलोडिंग ऑफ गुड्स अराईवल एंड मूवमेंट) 2011 से चल रही थी. राज्य में वैट को संचालित करने के लिए. हालांकि ई-सुगम को पिछले साल 24 सितंबर को राज्य के व्यवसायिक कर विभाग ने बंद कर दिया है. फिर इसके 8 से 10 दिन के अंदर ही राज्य ने ई-वे बिल सिस्टम को लॉन्च कर दिया, जिसे वहां के व्यापारियों ने स्वीकार भी कर लिया.

एक अधिकारी के मुताबिक, ई-वे बिल सिस्टम बहुत आसान है. माल की सप्लाई के लिए बिल में खुद को रजिस्टर्ड करवाइए, 6-7 जरूरी जानकारी दीजिए, गाड़ी नंबर दीजिए, फिर आपका ई-वे परमिट जारी हो जाएगा. कहीं रोके जाने पर ट्रांसपोर्टर को यही ई-वे परमिट दिखाना होगा जो मोबाइल में दर्ज होगा. फिलहाल कर्नाटक में अब तक के अनुभव के आधार पर महज 2 फीसदी लोगों का ई-वे परमिट चेक किया गया है. जबकि महज 0.2 फीसदी सामानों की जांच कर अधिकारियों द्वारा की गई है.

राजस्थान और उत्तराखंड ने स्वीकारा

ई-वे बिल सिस्टम की कर्नाटक में कामयाबी के बाद भाजपा शासित 2 राज्यों राजस्थान और उत्तराखंड ने दिसंबर में इसे अपने यहां लागू कर दिया. जबकि केरल, गुजरात और नगालैंड भी इसे अपने यहां लागू करने में रुचि दिखा रहा है.

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इसी तरह जीएसटी काउंसिल ने 16 दिसंबर को बैठक के दौरान ई-वे बिल को लागू करने के लिए सहमति जताई है. काउंसिल ने फैसला लिया है कि व्यापारी और ट्रांसपोर्टर इस सिस्टम का स्वैच्छिक तौर पर 16 जनवरी से प्रयोग कर सकते हैं.

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