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क्या सोनिया की कांग्रेस में किनारे किए जा रहे हैं राहुल के करीबी?

राहुल गांधी के नेतृत्व में अशोक तंवर, संजय निरुपम, मिलिंद देवड़ा, देब बर्मन और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे चेहरों को तरजीह मिलती रही. लेकिन लोकसभा चुनाव की हार के बाद जैसे ही राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा, उनके इन करीबियों पर गाज गिरना शुरू हो गई.

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राहुल गांधी के साथ अशोक तंवर (फाइल फोटो- PTI)
राहुल गांधी के साथ अशोक तंवर (फाइल फोटो- PTI)

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  • लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने छोड़ा था अध्यक्ष पद
  • सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद राहुल के करीबियों पर गिरी गाज
  • तंवर और संजय निरुपम ने खुलकर लगाए सोनिया के करीबियों पर आरोप

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. लंबे समय तक उनकी मान-मनौव्वल चलती रही, लेकिन राहुल नहीं माने और अंतत: राहुल की जगह सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया. सोनिया के कमान संभालते ही कांग्रेस में ओल्ड गार्ड के रिएक्टिव होने की चर्चा होने लगी और राहुल के करीबियों पर किनारे होने का संकट भी छाने लगा. कई मौकों पर ऐसा ही देखने को मिला. हाल में पार्टी छोड़ने वाले अशोक तंवर ने भी इस तरह के आरोप लगाए और संजय निरुपम ने भी सीधे पर तौर पर सोनिया गांधी को उनके करीबियों से बचने की सलाह दे डाली.

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राहुल गांधी के नेतृत्व में अशोक तंवर, संजय निरुपम, मिलिंद देवड़ा, देब बर्मन और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे चेहरों को तरजीह मिलती रही. लेकिन लोकसभा चुनाव की हार के बाद जैसे ही राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ा, इन करीबियों पर गाज गिरनी शुरू हो गई. पंजाब कैबिनेट में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच कई मौकों पर खींचतान नजर आई. सिद्धू राहुल को अपना कैप्टन बताते रहे और कभी अमरिंदर सिंह को अपना लीडर स्वीकार नहीं कर पाए. अंतत: नतीजा ये हुआ कि सिद्धू की पारी कैप्टन अमरिंदर के सामने फीकी पड़ गई और उन्हें सबकुछ गंवाना पड़ा.

अशोक तंवर का पत्ता कटा

हाल ही में हरियाणा में भी राहुल की टीम को एक झटका लगा, जब अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा लगातार अशोक तंवर का विरोध करते रहे और चुनाव से ठीक पहले सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया. हालांकि, सामंजस्य हुड्डा या उनके परिवार को भी पार्टी की कमान नहीं सौंपी गई और सोनिया की करीबी माने जाने वाली कुमारी शैलजा को प्रदेश की कमान सौंपकर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की गई.

इस फैसले में सोनिया की टीम की झलक साफ नजर आई. सोनिया गांधी के करीबी अहमद पटेल और हुड्डा के अच्छे संबंध हैं. यही नहीं हरियाणा के इंचार्ज गुलाम नबी आजाद भी लगातार आलाकमान को यही समझाते रहे कि बीजेपी के सामने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा किसी का सिक्का नहीं चल पाएगा. लिहाजा, इस पूरी लड़ाई में हुड्डा विनर साबित हुए.

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संजय निरुपम ने भी उठाए सवाल

मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय निरुपम ने भी चुनाव के बीच पार्टी को बड़ा झटका दिया. पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए संजय निरुपम ने कहा कि सोनिया गांधी को अपने दरबारियों से मुक्ति पानी चाहिए. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वो सोनिया गांधी के खिलाफ नहीं है, लेकिन निरुपम ने राहुल गांधी से वनवास खत्म कर पार्टी की कमान संभालने की भी अपील की.

संजय निरुपम के इस बयान ने भी कांग्रेस के भीतर सोनिया गांधी और राहुल की टीम के बीच के अंदरूनी गतिरोध को सार्वजनिक मंच पर लाने का काम किया है. दूसरी तरफ अशोक तंवर ने स्पष्ट तौर पर सोनिया गांधी की टीम के नेताओं पर गंभीर इल्जाम लगाए और दावा किया कि पार्टी ने राहुल गांधी के वफादारों को किनारे किया है.

राहुल गांधी के एक ऐसे ही करीबी माने जाने वाले युवा नेता प्रद्युत देब बर्मन से भी त्रिपुरा में कांग्रेस की कमान छिन चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर देब बर्मन ने कहा था कि कांग्रेस में भ्रष्ट लोगों की एंट्री हो चुकी है.

देब बर्मन के अलावा राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले मिलिंद देवड़ा को भी मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा है.

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यानी लोकसभा चुनाव की हार के बाद राहुल गांधी का अध्यक्ष पद छोड़ना उनके कई करीबी नेताओं पर भारी पड़ा है. यही वजह है कि सोनिया गांधी के अध्यक्ष रहते किनारे किए जा रहे राहुल के करीबी भी खुलकर ये मुद्दा उठा रहे हैं और सोनिया गांधी को अपने करीबियों से बचने की नसीहत दे रहे हैं.

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