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कर्नाटक: कांग्रेस के लिंगायत कार्ड का BJP ने निकाला तोड़, उल्टा पड़ेगा दांव?

केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि हिंदू, बौद्ध और सिख समुदाय के दलितों को ही नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलता है. यदि वीरशैव-लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दे दिया गया तो दलित तबके के लोग आरक्षण से वंचित रह जाएंगे.

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पीएम मोदी और बी.एस येदुरप्पा.
पीएम मोदी और बी.एस येदुरप्पा.

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कर्नाटक चुनाव के पहले कांग्रेस ने खेला लिंगायत समुदाय का दांव उसी को उल्टा पड़ सकता है. सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार इसकी मंजूरी देने के मूड में नहीं है. इसे लेकर पीएम मोदी के नेतृत्व में कैबिनेट मीटिंग हुई. इसमें अधिकतर मंत्रियों ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने का विरोध किया.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, मीटिंग में मंत्रियों ने तर्क दिया कि वीरशैव-लिंगायत समुदाय को अलग दर्जा देने पर दलितों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकेगा.

सूत्रों की मानें तो केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि हिंदू, बौद्ध और सिख समुदाय के दलितों को ही नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण मिलता है. यदि वीरशैव-लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दे दिया गया तो दलित तबके के लोग आरक्षण से वंचित रह जाएंगे.

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वहीं, केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया. उन्होंने कहा कि यूपीए-2 ने भी इस मांग को खारिज कर दिया था. उस वक्त यह मांग उठी थी कि लिंगायतों और वीरशैव-लिंगायतों को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए.

क्या था कांग्रेस का दांव...

कर्नाटक में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देकर बड़ा दांव खेल दिया है. कांग्रेस के इस दांव से बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है.

निर्णायक भूमिका में हैं लिंगायत

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की संख्या राज्य की कुल आबादी की 17 से 18 फीसदी है. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं. बीजेपी ने विवादित येदियुरप्पा को सीएम पद का दावेदार बनाकर इस समुदाय को लुभाने की कोशिश की थी. हालांकि, अब कांग्रेस ने नया दांव खेला है. राजनीतिक कारणों की वजह से बीजेपी कांग्रेस के इस कदम का विरोध कर रही है. इससे लिंगायतों के बीजेपी से रूठकर कांग्रेस के खेमे में जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं.

केंद्र के पाले में है गेंद

लिंगायत समुदाय लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें अलग धर्म का दर्जा दिया जाए. कर्नाटक सरकार ने नागमोहन कमेटी की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन एक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया. अब इसकी अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी का पक्ष रहा है कि वह लिंगायतों को हिंदू धर्म का ही हिस्सा मानती रही है. ऐसे में बीजेपी फिलहाल कांग्रेस के इस दांव की काट तलाश रही है.

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कौन हैं लिंगायत?

लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है.

लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था. बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया. वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई.

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