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विवादों ने किया कन्हैया के बिहार दौरे का रंग फीका

सोमवार को जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का तीन दिनों का बिहार दौरा खत्म हो गया लेकिन कन्हैया बिहार दौरे में अपने पीछे कई ऐसे विवाद छोड़ गये जो आने वाले दिनों में उन्हें सालते रहेंगे.

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विवादों से घिरा रहा कन्हैया का बिहार दौरा
विवादों से घिरा रहा कन्हैया का बिहार दौरा

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सोमवार को जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार का तीन दिनों का बिहार दौरा खत्म हो गया लेकिन कन्हैया बिहार दौरे में अपने पीछे कई ऐसे विवाद छोड़ गये जो आने वाले दिनों में उन्हें सालते रहेंगे.

जाते-जाते विवाद छोड़ गया कन्हैया
पहला सवाल उठा एक उभरते कॉमरेड के लालू यादव के पैर छूकर आशीर्वाद लेने पर. सीवान के जिस कॉमरेड चन्द्रशेखर की पहचान से जेएनयू बिहार से जुड़ा था, कन्हैया ने उसी पहचान पर पहली चोट की, जब कन्हैया ने लालू यादव के पैर छू लिए. लालू की छत्रछाया में अपनी राजनीति करने वाले शहाबुद्दीन को कोई जेएनयू का छात्र कैसे भूल सकता है, जिसपर सीवान में कॉमरेड चन्द्रशेखर को भरी सभा में गोलियों से भून देने का आरोप लगा हो और जिस जेएनयू ने बिहार में लालू यादव के दौर में अपने सबसे बड़े नेता चन्द्रशेखर को खोया हो. लालू यादव के पैर छूने की अपनी सफाई में कन्हैया ने इसे अपना संस्कार करार दिया लेकिन लाल सलाम बोलने वाले खांटी कॉमरेडों को कन्हैया के तहजीब का ये सार्वजनिक प्रदर्शन गले नहीं उतरा.

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कन्हैया की यात्रा की फंडिंग को लेकर उठे सवाल
कन्हैया भले ही जातिविहीन राजनीति की वकालत करता हो लेकिन लालू यादव ने मुलाकात के बाद कन्हैया को उनकी जाति की याद दिला दी. लालू ने कन्हैया के विचारों की तारीफ तो की लेकिन उनके भूमिहार जाति से होने का एहसास भी करा दिया. विवाद सिर्फ लालू यादव से मुलाकात तक सीमित नहीं रहा. बिहार में कन्हैया के साथ एक शराब कारोबारी विनोद जायसवाल की तस्वीरों ने भी सुर्खियां बटोरी. विपक्ष ने आरोप लगाया कि कन्हैया के बिहार यात्रा की फंडिंग इसी शराब कारोबारी ने की थी, जिसके शराब का कारोबार बिहार से लेकर ओडिशा तक फैला है. सवाल इसपर भी उठे कि कन्हैया की महंगे हवाई यात्रा से लेकर पटना के बड़े चौक चौराहों पर लगी बड़ी साइज के कट आउट और होर्डिंग का फंड कहां से आया. हालांकि कन्हैया ने अपने ऊपर उठ रहे सभी सवालों के जबाब दिए कि उनके लिए फंड किसी कारोबारी ने नहीं बल्कि गरीब मजदूरों के चंदे से तैयारियां हुई थी.

नीतीश ने कन्हैया की ले ली क्लास
लालू के बाद कन्हैया ने नीतीश कुमार के घर का रूख किया तो नीतीश कुमार ने कन्हैया से उनकी शराबबंदी के खिलाफ विचार रखने और बिहार में शराबबंदी के खिलाफ बोलने पर कन्हैया की खिंचाई कर डाली. सोमवार को जनता दरबार में नीतीश कुमार ने खुलकर कहा कि उन्होंने कन्हैया से शराबबंदी के खिलाफ विचार रखने को लेकर पूछा और साफ कर दिया कि शराबबंदी का विरोध अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में नहीं आता. गौरतलब है कि कन्हैया ने पटना में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कहा था शराब पीना या नहीं पीना ये लोगों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है. कन्हैया के इसी विचार ने नीतीश कुमार को भी खफा कर दिया.

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बीमार पिता से दूरी बनाकर मिला कन्हैया
यही नहीं इसी दौरान कन्हैया के बीमार पिता जब ऐंबुलेंस से पटना लाए गए तो ऐंबुलेस की खिड़की से अंदर झांककर पिता को देखते कन्हैया की तस्वीरें भी वायरल हो गई. जिसपर कई सवाल भी उठे कि यहां राजनेताओं से मिलने की फुर्सत तो कन्हैया ने निकाल ली लेकिन अपने बीमार पिता की सेवा तो दूर से कन्हैया ऐंबुलेस में भी अपने पिता से ठीक से नहीं मिला.

कन्हैया के कार्यक्रम में 'भारत माता की जय' के नारे
रविवार को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में कन्हैया के भाषण के दौरान तब फिर सवाल उठा जब पटना विश्वविद्यालय के तीन छात्र कन्हैया के भाषण के बीच ही उठकर "भारत माता की जय" के नारेबाजी करने लगे. तब कन्हैया समर्थकों का भी वही रूप दिखा जो दिल्ली की अदालत में कन्हैया के पेशी के वक्त वकीलों का था. कन्हैया समर्थकों ने दो छात्रों मणिकांत और नीतीश की जमकर पिटाई कर दी गई. बड़ी मुश्किल से पुलिस उन लड़कों को कन्हैया समर्थकों की भीड़ से बचा सकी. हालांकि कन्हैया बार-बार अपने समर्थकों से पिटाई नहीं करने की अपील करते रहे लेकिन ये भी सच है कन्हैया के समर्थक भी कुछ वैसे ही हिंसक दिखे जैसे कन्हैया की पेशी के वक्त तीस हजारी के वकील दिखे थे.

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छात्र नेता कम, राजनेता ज्यादा दिखे कन्हैया
अपने तीन दिनों के बिहार दौरे में कन्हैया छात्र नेता कम और राजनेता के तौर पर ज्यादा दिखा. अपने भाषण में भी कन्हैया ने पीएम मोदी को ही निशाने पर रखा और चुटकुले भी मोदी पर ही सुनाऐ. अपने भाषण में कन्हैया ने कहा ज्यादा कन्हैया-कन्हैया मत बोलो नहीं तो मोदी-मोदी सुनाई देने लगेगा.

यात्रा के दौरान बड़े नेताओं से मुलाकात
अगर कन्हैया के दौरे के कार्यक्रम को देखें तो साफ लगता था मानों कन्हैया किसी बड़े राजनैतिक गोलबंदी के लिए पंहुचा हो. पहली मुलाकात लालू यादव, दूसरी मुलाकात नीतीश कुमार, तीसरी मुलाकात कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और फिर बीएसपी के बिहार के नेताओं और आखिर में सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई-एमएल के नेताओ से मुलाकात. ये कुछ ऐसे कार्यक्रम तय थे जो कन्हैया को किसी जूनियर हरकिशन सिंह सुरजीत की तरह बना रहे थे, जो किसी राजनीतिक गोलबंदी के लिए जुटा था लेकिन हर बड़े मुलाकात के बाद कन्हैया को ये एहसास जरूर हो गया कि नेताओं से मुलाकात एक बात है लेकिन नेताओं को अपनी लाइन पर लाना उतना ही मुश्किल.

कन्हैया की सुरक्षा के लिए किए गए थे जबरदस्त बंदोबस्त
जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार का पटना दौरा विवादों से घिरा रहा. वीआईपी सुरक्षा से लेकर शराब कारोबारियों के कनेक्शन को लेकर वे वहां विपक्ष के निशाने पर रहे. कन्हैया की सभा में काला झंडा दिखाने वाले युवक की पिटाई पर विपक्ष ने हमला करते हुए कहा की अब कहां गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता. कन्हैया को मिली वीवीआईपी ट्रीटमेंट को लेकर भी सवल उठते रहे, पटना में मिली अभूतपूर्व सुरक्षा ने कन्हैया को रातोंरात अम से खास बना दिया. यहां कन्हैया के काफिले में सफारी और स्कॉर्पियो जैसी 11 बड़ी गाड़ियां, पुलिस के खास बंदोबस्त और काफिले में चल रही ऐंबुलेस उसे राज्य का सरकारी मेहमान सरीखा बना दिया. हालांकि सरकार ने इसे कन्हैया के सुरक्षा से जोड़कर इस पर सफाई दी.

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बहरहाल कन्हैया का बिहार दौरा उसी मंत्र के साथ खत्म हुआ कि अगर देश से बीजेपी को हटाना है तो बीजेपी विरोधी दलों को एक होना होगा लेकिन छात्रनेता कन्हैया से इससे ज्यादा इस बात की उम्मीद थी कि वो लालू और नीतीश के दर पर जाने से पहले अपने कॉलेज और अपने विश्वविद्यालय जरूर जाएगा जहां उसके शुरुआती संघर्ष के दिन गुजरे हैं. उसके इस दौरे पर उन छात्रों को मलाल रह गया जो कभी पटना विश्वविद्यालय में उसके साथी रहे हैं. कन्हैया ने अपने इस दौरे में पटना विश्वविद्यालय को कोई तवज्जो नहीं दी, जिसके आंगन में उसने न सिर्फ पढ़ाई की बल्कि संघर्ष की शुरुआत भी की थी.

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