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नेपाली सेना के शीर्ष दागी कमांडर की पदोन्नति पर विवाद

नेपाल के एक शीर्ष कमांडर को सेना का चीफ ऑफ जनरल स्टाफ बनाने के सरकार के निर्णय से विवाद उत्पन्न हो गया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निगरानी संस्था ने मांग की है कि वह आदेश को वापस ले क्योंकि गृह युद्ध के दौरान उनके खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की जांच लंबित है.

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नेपाल के एक शीर्ष कमांडर को सेना का चीफ ऑफ जनरल स्टाफ बनाने के सरकार के निर्णय से विवाद उत्पन्न हो गया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निगरानी संस्था ने मांग की है कि वह आदेश को वापस ले क्योंकि गृह युद्ध के दौरान उनके खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की जांच लंबित है.

नेपाल में मानवाधिकार के उच्चायुक्त कार्यालय (ओसीएचएनआर-एन) ने सरकार से कहा है कि वह लेफ्टिनेंट जनरल तोरान जंग बहादुर सिंह को चीफ ऑफ जनरल स्टाफ बनाने के निर्णय को वापस ले. उन पर वर्ष 2003-04 में सेना के हिरासत से 49 लोगों के लापता होने में संलिप्त होने का आरोप है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निगरानी संस्था ने 2006 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें सिंह पर बटालियन पर मनमाने तरीके से माओवादियों को हिरासत में रखने, उत्पीड़न करने और उनके गायब होने का आरोप है.

भले ही सिंह सीधे तौर पर उनके लापता होने में शामिल नहीं रहे हों लेकिन ओएचसीएचआर ने उन्हें जिम्मेदार माना है क्योंकि वहीं शिविर के प्रभारी थे. ओएचसीएचआर-एन ने सरकार से उनकी पदोन्नति को वापस लेने को कहा है क्योंकि उनके खिलाफ लापता करने के आरोप लंबित हैं. ओएचसीएचआर नेपाल के प्रतिनिधि रिचर्ड बेनेट ने एक बयान में कहा कि सिंह के निलंबन से नेपाल की सेना की इज्जत देश एवं विदेशों में बढ़ेगी. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने हिरासत से लोगों के गायब होने के मामले में संलिप्त लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है. सिंह के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की गई है.

रक्षा मंत्री विद्या भंडारी द्वारा जून में शीर्ष कमांडर की पदोन्नति की अनुशंसा के बावजूद यह महीनों से लंबित थी. इस बीच नेपाल के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मेजर निरंजन बासनेत द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की जांच के लिए सेना की अदालत का गठन करने के निर्णय पर कड़ी आपत्ति जताई है. बासनेत पर सेना की हिरासत में 15 वर्षीय लड़की मैना सुनुवार की हत्या करने का आरोप है. मानवाधिकार समूहों ने मांग की है कि उनकी सेना की अदालत के बजाय सामान्य अदालत में सुनवाई होनी चाहिए. एनएचआरसी ने एक बयान में कहा कि स्कूली लड़की मैना और काठमांडो के व्यवसायी राम हरि श्रेष्ठ की हत्या जैसे मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर मामलों की सुनवाई न तो सेना की अदालत कर सकती है और न ही माओवादियों की पीपुल्स अदालत.

कावरे की रहने वाली मैना की कथित तौर पर फरवरी 2004 में मेजर बासनेत की कमान वाले सेना के शिविर में उत्पीड़न कर हत्या कर दी गई थी. श्रेष्ठ की माओवादी कमांडर काली बहादुर खाम ने मई 2008 में कथित तौर पर अपहरण कर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ द यूसीपीएन माओवादी के शिविर में हत्या कर दी थी. खाम के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए माओवादियों ने पार्टी में उसकी पदोन्नति कर दी और सेना ने बासनेत को क्लीनचिट देकर चाड में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के लिए भेज दिया. बहरहाल संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकार समूहों के दबाव के मद्देनजर बासनेत को इस महीने वापस नेपाल बुलाया गया.

एनएचआरसी ने मैना और श्रेष्ठ के मामलों को नागरिक अदालत में चलाने की आवश्यकता पर जोर दिया है क्योंकि ये गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संस्था और अमेरिका सहित नेपाल में शीर्ष राजदूतों ने सरकार से देश में गृह युद्ध के दौरान या इसके बाद मानवाधिकार उल्लंघन में शामिल रहे लोगों को दंडित करने की मांग की. माओवादियों के नेतृत्व में दशक भर चले गृह युद्ध के दौरान ‘‘लापता’’ होने के मामले की जांच में असफल रहने पर उन्होंने सरकार की आलोचना की. गृह युद्ध नवंबर 2006 में समाप्त हुआ. अमेरिका ने एक कानून पारित कर नेपाल सरकार को आर्थिक सहयोग देने से रोक दिया है जिसका उद्देश्य देश की सेना पर अपने अधिकारों के पालन का दबाव बनाना है.

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