इलेक्टोरल बॉन्ड्स राजनीतिक चंदे के लिए कॉरपोरेट जगत का सबसे पसंदीदा तरीका बन गया है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के ताजा अध्ययन के मुताबिक कारोबारी घरानों ने बीते 6 साल में इलेक्टोरल ट्रस्टों और सीधे चंदे के माध्यम से करीब 2000 करोड़ रुपए चंदा दिया. ये इलेक्टोरल ट्रस्ट यूपीए सरकार के कार्यकाल में बनाए गए थे.
दिलचस्प है कि इस साल जनवरी से मई तक पांच महीने में ही एनडीए सरकार की ओर से लाए इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए पिछले 6 साल की तुलना में दुगना चंदा आया. एडीआर के अध्ययन से पता चलता है कि राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट चंदे में हाल के वर्षों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है. इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए चंदा सीक्रेट रहने का सरकार दावा करती है और कहती है कि सिर्फ इन्हें जारी करने वाले बैंक को ही चंदा देने वाले का पता होता है. वहीं विपक्षी पार्टियां आरोप लगाती रही हैं कि ये बॉन्ड स्कीम जिस पार्टी की सरकार है, उसके पक्ष में है.
कारोबारी घरानों की ओर से राजनीतिक चंदा देने के तरीके में बदलाव आया है. ताजा स्टडी बताती है कि कॉरपोरेट्स राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड्स की तरफ शिफ्ट कर गए हैं. ये अतीत के तरीकों से हट कर है. साल 2012 से 2018 के बीच कारोबारी घरानों ने 1941.95 करोड़ रुपये राजनीतिक दलों को चंदा दिया. ये कुल चंदे का 91.17 फीसदी है. इन छह सालों में राजनीति दलों को कुल चंदा 2129.92 करोड़ रुपये मिला. इसमें से 50 फीसदी चंदा 26 इलेक्टोरल ट्रस्टों के माध्यम से आया जो कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार में बनाए गए थे. बाकी चंदा कारोबारी घरानों की ओर से सीधे दिया गया.
मार्च 2018 में मोदी सरकार की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड्स लाए जाने से सारी तस्वीर बदल गई. राजनीतिक दलों को इस साल जनवरी से मई के बीच 4794 करोड़ रुपये चंदा मिला. 2018 में मार्च, अप्रैल,जुलाई, अक्टूबर, नवंबर के महीनों में 1056 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके. अभी तक कुल 5851 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बिक चुके हैं.
इंडिया टुडे टीवी ने पहले रिपोर्ट किया था कि साल 2017-18 में बिके कुल इलेक्टोरल बॉन्ड्स में से 95 फीसदी चंदा बीजेपी को मिला. एक आरटीआई से खुलासा हुआ था कि कुल 222 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड्स में से बीजेपी को 210 करोड़ रुपये चंदा मिला.
एडीआर के हेड मेजर जनरल (रिटायर्ड) अनिल वर्मा ने इंडिया टुडे टीवी से कहा, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स को इसलिए तरजीह दी जाती है क्योंकि ये अपारदर्शी हैं, सिर्फ चंदा देने वाले, बैंक और सरकार को ही इसकी जानकारी होती है. यही वजह है कि हम इलेक्टोरल ट्रस्ट की तुलना में इलेक्टोरल बॉन्ड्स आने पर चंदे में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है.’
एडीआर स्टडी बताती है कि हाल के सालों में कॉरपोरेट्स की ओर से राजनीतिक चंदा दिए जाने में तेजी से इजाफा देखा गया है. साल 2004-05 से साल 2011-12 में राजनीतिक दलों को ज्ञात स्रोतों से मिलने वाले चंदे में से 87 फीसदी कारोबारी घरानों से आया. ये हिस्सेदारी साल 2012-13 से साल 2015-16 के बीच बढ़कर 87 फीसदी हो गई. साल 2016-17 से साल 2017-18 के बीच कारोबारी घरानों से चंदे की ये हिस्सेदारी बढ़कर 93 फीसदी तक जा पहुंची.
कॉरपोरेट्स से राजनीतिक दलों को चंदे का विश्लेषण बताता है कि सभी राष्ट्रीय दलों को उनसे चंदा मिल रहा है लेकिन बीजेपी सबसे पसंदीदा पार्टी है. बीजेपी को ज्ञात स्रोतों से जितना कुल चंदा मिला उसमें से 94 फीसदी कॉरपोरेट्स से आया. वहीं एनसीपी को कुल मिले चंदे में से कॉरपोरेट की हिस्सेदारी 93 फीसदी और कांग्रेस को ये हिस्सेदारी 81 फीसदी थी. यहां तक कि सीपीएम को भी कुल मिले चंदे में से 55 फीसदी कॉरपोरेट्स से मिला.
बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने बीजेपी को राजनीतिक चंदे में से सबसे मोटी हिस्सेदारी मिलने का बचाव किया. राव ने इंडिया टुडे टीवी से कहा, ‘बीजेपी चंदा पारदर्शी तरीके से लेती है जबकि कांग्रेस नंबर 2 तरीके से ये करती है. नकद चंदा उनकी परंपरा रही है.’
राव ने आरोप लगाया, ‘कांग्रेस की नकद में काले धन का चंदा लेने की संस्कृति रही है, कांग्रेस ने समानांतर अर्थव्यवस्था खड़ी की जिससे कि मुख्य तौर पर वो अपने राजनीतिक फंडिंग के हितों को साधती रहे. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है इसलिए उसे राजनीतिक चंदा सबसे ज्यादा मिल रहा है.’
कांग्रेस ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि सरकार विपक्ष को दबाने के लिए नए नए तरीके ढूंढ रही है. कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया ने आरोप लगाया- ‘इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए बीजेपी ने सारा चंदा हासिल करने के लिए नया तरीका निकाल लिया है. विपक्ष के सभी फंडों को दबाने के लिए ये उनका काम करने का तरीका है.’