पूरे देश की तरह इस परिवार को भी मुंबई आतंकी हमले के गुनहगार आमिर अजमल कसाब की फांसी का बेसब्री से इंतजार था. लेकिन बुधवार को कसाब को फांसी होने के बाद भी दिवंगत मम्मू सिंह जल्लाद का परिवार थोड़ा मायूस है, क्योंकि कसाब को अपने हाथों से फांसी देने की मम्मू जल्लाद की इच्छा अधूरी रह गई.
मम्मू जल्लाद के बेटे पवन ने कहा, ‘कसाब को फांसी पर लटकाए जाने से देश के दूसरे नागरिकों की तरह मुझ्झे और मेरे परिवार को भी बहुत खुशी है, लेकिन थोड़ी मायूसी है भी है, क्योंकि यदि मेरे पिता जिंदा होते तो शायद सरकार उन्हें ही कसाब को फांसी देने के लिए बुलाती और फिर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता.
मेरठ की केंद्रीय कारागार में जल्लाद के तौर पर तैनात रहे मम्मू जल्लाद की आखिरी इच्छा कसाब को फांसी पर लटकाने की थी. अपने जीवन में करीब 12 खूंखार अपराधियों को फांसी पर लटकाने वाले मम्मू की पिछले साल 19 मई को बीमारी के कारण मौत हो गई थी.
मेरठ की भगवतपुरा कॉलोनी निवासी मम्मू के बेटे पवन ने कहा, 'जब कसाब को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी तो मेरे पिता बहुत खुश थे. वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि कसाब को फांसी देने की कानूनी प्रक्रिया जल्द पूरी हो और उसे फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए सरकार उन्हें बुलावा भेजे. जल्लाद के पेशे में अपने अनुभव को देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि कसाब को फांसी देने के लिए सरकार उन्हें बुलाएगी.'
पवन के मुताबिक, उनके पिता मम्मू कहते थे कि कसाब को फांसी पाकिस्तानी आतंकवादियों के लिए सबक होगी और वे भारत में दहशतगर्दी फैलाने से पहले सौ बार सोचेंगे. मम्मू को फांसी लगाने का पेशा विरासत में मिला था. उनके दादा अंग्रेजों के जमाने से फांसी लगाने का काम करते थे. उनकी मौत के बाद यह काम पिता कल्लू सिंह के हाथों में आया, जिन्होंने 1989 में इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी पर लटकाया. उनके बाद मम्मू ने यह काम सम्भाला.
करीब 40 साल तक मम्मू ने अपराधियों को फांसी पर लटकाने का काम किया. उन्होंने उत्तर प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली में भी अपराधियों को फांसी पर लटकाया.