सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को किसी अपराधी को मौत की सजा सुनाते वक्त अपराध की स्थिति और अपराधी के चरित्र को ध्यान में रखते हुये उन ‘विशेष कारणों’ का भी जिक्र करना चाहिए, जिसके लिये उसे मौत की सजा दी जा रही है.
न्यायमूर्ति ए. के. पटनायक और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने एक दशक पुराने रेप और हत्या के मामले में दो अपराधियों की मौत की सजा की पुष्टि करने का राजस्थान हाई कोर्ट का फैसला निरस्त करते हुये दोनों को उम्र कैद की सजा दी.
न्यायाधीशों ने इस मामले में मुजरिम राम निवास और बलवीर को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत के निर्णय को त्रुटिपूर्ण पाया और कहा कि उसे इस प्रकरण को दुर्लभ में भी दुर्लभतम की श्रेणी में रखने के विशेष कारणों का जिक्र करना चाहिए.
न्यायाधीशों ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354(3) के प्रावधान के अनुरूप मौत की सजा सुनाते वक्त विशेष कारणों का जिक्र करना चाहिए और इन विशेष कारणों का जिक्र करते समय अदालत को अपराध और अपराधी के बारे में ध्यान देना चाहिए.
न्यायालय ने संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुये कहा कि रिकॉर्ड में ऐसी सामग्री है, जिससे पता चलता है कि प्रतिवादियों द्वारा मृतक से बलात्कार और उसकी हत्या का अपराध क्रूरतापूर्ण था, लेकिन ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिससे प्रतिवादियों के चरित्र के बारे में यह सिद्ध होता तो कि उन्हें मौत की सजा ही दी जानी चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने प्रतिवादियों को मौत की सजा सुनाते वक्त विशेष कारणों का जिक्र किया और कहा कि एक नवंबर 2003 को वे पीडि़ता (अब मृतक) को अपने साथ ले गये और उन्होंने रात के अंधेरे में उससे बलात्कार किया. इसके बाद उसकी चुन्नी से ही उसका गल घोंट दिया.
न्यायाधीशों ने कहा कि उनकी राय में निचली अदालत के निर्णय में लिखे कारण यह अपराध दुर्लभतम की श्रेणी में नहीं आता है, जिसके लिये उन्हें मौत की सजा दी जाये.