अगर आप सड़कों और गलियों पर घूमने वाली आवारा गाय या फिर किसी जानवर के हमले के शिकार हुए हैं, तो आप स्थानीय प्रशासन और सरकार के खिलाफ केस करके अच्छा मुआवजा पा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा के मुताबिक अगर हमला करने वाले जानवर का कोई मालिक है, तो पीड़ित पक्ष उसके खिलाफ क्रिमिनल या सिविल केस कर सकता है. अगर गाय, कुत्ता या फिर किसी अन्य जानवर के मालिक के खिलाफ सिविल केस किया जाता है तो कोर्ट पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलाता है. वहीं, क्रिमिनल केस में आरोपी को दोषी पाए जाने पर स सुनाई जाती है और जुर्माना लगाया जाता है.
सरकार और स्थानीय प्रशासन जिम्मेदार
एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा का कहना है कि अगर कोई गाय या कुत्ता आवारा है और उसका कोई मालिक नहीं है, तो ऐसे मामले में सरकार और स्थानीय प्रशासन को जिम्मेदार माना जाता है. लिहाजा गाय, कुत्ता या किसी अन्य जानवर के हमले का शिकार व्यक्ति या उसके परिजन मुआवजे के लिए राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन के खिलाफ केस कर सकते हैं.
उन्होंने बताया कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार और स्थानीय प्रशासन की लीगल ड्यूटी है. अगर गाय या किसी अन्य जानवर के हमले से किसी के जीवन को संकट पैदा होता है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का हनन है. लिहाजा पीड़ित पक्ष अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाईकोर्ट और अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट में केस कर सकता है. इसके अलावा निचली अदालत में भी किस किया जा सकता है.
पीड़ित परिवार को मिल चुका है मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि शकुंतला बनाम दिल्ली सरकार और अन्य के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने आवारा जानवर के हमले में जान गंवाने वाले एक व्यक्ति के परिजनों को एमसीडी से ₹10 लाख का मुआवजा दिलाया था.
इस मामले में आवारा जानवर के हमले से सीताराम नाम के व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसके बाद मृतक की पत्नी शकुंतला ने अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और 10,00,000 मुआवजे की मांग की थी.
याचिकाकर्ता शकुंतला ने अपनी दलील में कहा कि दिल्ली सरकार और एमसीडी की जिम्मेदारी है कि वो सड़कों और सार्वजनिक स्थान पर घूमने वाले आवारा जानवरों को ठिकाने लगाएं. दिल्ली सरकार और एमसीडी ने अपनी लीगल ड्यूटी का निर्वहन नहीं किया और लापरवाही दिखाई, जिसके चलते मेरा पति सीताराम जानवर के हमले का शिकार हो गया और उसकी मौत हो गई.
इसके बाद मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को सही ठहराया साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत भी कई मामलों में फैसला सुना चुकी है कि आवारा जानवरों को सड़कों या सार्वजनिक स्थानों से हटाने की जिम्मेदारी सरकार और स्थानीय प्रशासन की होती है. अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन अपनी इस लीगल ड्यूटी में लापरवाही बरतते हैं, तो उनके खिलाफ केस किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा ने बताया कि मिल्कमैन कॉलोनी विकास समिति बनाम राजस्थान सरकार के मामले की सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर नगर निगम को सड़क पर घूमने वाले सभी आवारा जानवरों को हटाने का आदेश दिया था.