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मोदी सरकार से नाराज गोपालक 18 फरवरी से रामलीला मैदान में भरेंगे हुंकार

अब 18 फरवरी की रैली में सरकार से मांग की जाएगी कि 2019 के आम चुनाव से पहले गाय संरक्षण और कल्याण के लिए अलग से मंत्रालय बनाया जाए. संगठन का मानना है कि गाय सदियों से हमारी अर्थव्यवस्था और समाजिक व्यवस्था की रीढ़ रही है लेकिन अंग्रेजों के प्रभाव की वजह से सरकारें इससे उदासीन हो गई हैं.

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गोशाला (फाइल फोटो)
गोशाला (फाइल फोटो)

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गायों की नस्लों की सुरक्षा और संरक्षा को लेकर चिंतित गोपालकों और गोसेवकों में मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी अब बढ़ती जा रही है. इसी कड़ी में 18 फरवरी को गोमाता प्रतिष्ठा आंदोलन रामलीला मैदान में हुंकार करने जा रहा है. इससे पहले भी रामलीला मैदान से गोपालमणि महाराज गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग कर चुके हैं.

इन रैलियों के मंच पर बीजेपी सांसद हेमा मालिनी सहित बीजेपी और संघ के बड़े-बड़े नाम बड़े एलान करके जा चुके हैं. सरकार और सांसद सभी गाय के नाम पर साथ आये तो सही लेकिन गोपालकों के लिए कुछ नहीं किया. अब गोपालक सरकार के तीन साल में गायों के संरक्षण को लेकर बरती गई उदासीनता से निराश हैं.

गोपालकों को मिले बढ़ावा

गोपालमणि महाराज कहते हैं कि लगभग चार साल के दौरान इस सरकार ने गोबर, गोमूत्र, गोबर गैस, गोबर की खाद पर इंसेंटिव देने की नीति पर कोई काम नहीं किया है. ये नीति जब तक नहीं बनेगी और उस पर ईमानदारी से अमल सुनिश्चित नहीं होगा तब तक गाय पालकों को बढ़ावा नहीं मिलेगा. अब तक गाय से लाभ के नाम पर सिर्फ दूध ही लोगों की निगाह में है.

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गोपालमणि महाराज का कहना है कि प्रधानमंत्री की बड़ी-बड़ी बातों और लंबे चौड़े दावों के बाद उनके सचिव के जरिये एक पत्र पीएम नरेंद्र मोदी को भेजा है. अब तक तो उसका कोई जवाब आया नहीं. अब 18 फरवरी की रैली में सरकार से मांग की जाएगी कि 2019 के आम चुनाव से पहले गाय संरक्षण और कल्याण के लिए अलग से मंत्रालय बनाया जाए.

व्यवस्था की रीढ़ है गाय

संगठन का मानना है कि गाय सदियों से हमारी अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ रही है लेकिन अंग्रेजों के प्रभाव की वजह से सरकारें इससे उदासीन हो गई हैं. इतिहास गवाह है कि मुगल शासकों ने भी अपने वारिसों से यही कहा था कि भारत में अपनी जड़ें जमानी हैं तो गाय के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी होगी.

गोपालमणि महाराज से ये भी सवाल पूछा गया कि जब से गायों को बूचड़खानों से बचाने की नीति पर सख्ती से अमल शुरू हुआ है गाय सड़कों पर आवारा पशु की तरह घूमती नजर आती हैं. गोशालाओं की दशा खराब है. लाखों-करोड़ों के जमा खातों वाली गोशालाओं में भी गायों को पालने के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है. गोशालाओं में भी उचित देखरेख और भोजन सुविधा के अभाव में गायें मर रही हैं. लेकिन लोगों को सिर्फ कानून की चिंता है गायों की नहीं.

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वैज्ञानिकों ने बताया महत्व

इस सवाल पर महाराज ने कहा कि हमारा आंदोलन इसी को लेकर है कि सरकार और समाज में गायों के लाभ को लेकर संवेदना जगे. गाय सिर्फ दुधारू पशु ही नहीं बल्कि हमारी सदियों पुरानी सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ रही है. अब तो पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध में देसी गायों के दिव्य गुणों की पुष्टि की है. शोध में इस तथ्य की भी पुष्टि हुई है कि गाय के दूध में रेडियो विकिरण यानी रेडिएशन को मात देने की ताकत है. गाय की पीठ पर दस मिनट हाथ फेरने से ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है.

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