माकपा ने शनिवार को आरोप लगाया कि यौन हिंसा के खिलाफ न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सिफारिशों के साथ सरकार ने ‘नाइंसाफी’ की है और इस पर जारी अध्यादेश सभी लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है.
‘प्रक्रियागत और ठोस आधारों’ पर अध्यादेश को खारिज करते हुए माकपा ने कहा, ‘जब संसद सत्र शुरू होने में तीन हफ्ते बचे हैं ऐसे में अध्यादेश जारी करना लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है.’
पार्टी ने कहा कि अध्यादेश ने वर्मा समिति की उन सिफारिशों को खारिज कर दिया है जो बलात्कार को कानून में विशेष लिंग आधारित अपराध बनाने, कर्तव्य में शिथिलता बरतने के दोषी लोक सेवकों की सजा में इजाफा करने, तेजाब हमले के पीड़ितों के मुआवजे की राशि बढ़ाने और ऐसे मामले के दोषियों की सजा बढ़ाने जैसे मुद्दों से जुड़े थे. अन्य सुझावों के बारे में भी सरकार ने ‘काफी चयनात्मक’ रवैया अपनाया.
माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, ‘अध्यादेश ने वर्मा समिति की रिपोर्ट से अन्याय किया है और लगता है कि सरकार की अभियोज्यता (स्टेट कल्पेबिलिटी) के गंभीर मुद्दों से ध्यान भटकाने का एक तरीका है.’ अध्यादेश में मौत की सजा के प्रावधान, जिसकी वर्मा समिति ने सिफारिश नहीं की थी, के बाबत माकपा ने कहा कि दुर्लभतम श्रेणी के मामले पहले ही कानूनी ढांचे का हिस्सा थे और इसमें बलात्कार तथा हत्या के मामले भी शामिल होंगे और ऐसा वर्मा समिति ने भी दोहराया है.
एक बयान में अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन (ऐडवा) ने भी सिफारिशों के प्रति सरकार के चयनात्मक एवं मनमाने रवैये पर आपत्ति जतायी.