लोकसभा चुनाव बेशक 2019 में होने हैं लेकिन बीजेपी से मुकाबला करने के लिए विपक्षी एकजुटता की कोशिशों को अभी से करारा झटका लगा है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने कांग्रेस से किसी भी तरह के तालमेल की संभावना पर विराम लगा दिया है. बता दें कि कोलकाता में 19 से 21 जनवरी तक सीपीएम की सेंट्रल कमेटी की बैठक हुई.
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल को लेकर सीपीएम के भीतर इस कदर तकरार हुई कि पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी के उस प्रस्ताव को ही पार्टी ने खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कांग्रेस के साथ तालमेल करने की बात कही थी. खबरों के मुताबिक सीताराम येचुरी पार्टी महासचिव होने के बावजूद अपने प्रस्ताव के नामंजूर होने से इस कदर आहत हुए कि उन्होंने इस्तीफा देने तक का प्रस्ताव दे दिया.
सीपीएम के भीतर पूर्व महासचिव प्रकाश करात और सीताराम येचुरी के बीच तीखे मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं. ‘हार्डलाइनर’ माने जाने वाले करात को जहां पार्टी की केरल लॉबी का समर्थन हासिल बताया जाता है वहीं ‘व्यावहारिक’ येचुरी के पीछे बंगाल लॉबी खड़ी बताई जाती है. लेकिन कोलकाता में हुई इस बैठक के बाद पार्टी के भीतर के मतभेद और खुलकर सामने आ गए.
सीताराम येचुरी चाहते थे कि सीपीएम 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी लोकतांत्रिक और सेकुलर दलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले ताकि बीजेपी का मुकाबला किया जा सके. लेकिन कोलकाता में सीपीएम की बैठक में प्रकाश करात का गुट भारी पड़ा जिसका यह कहना है कि कांग्रेस के साथ सीधे या परोक्ष किसी भी तरह से कोई समझौता नहीं होना चाहिए. सीताराम येचुरी के प्रस्ताव को सिर्फ 31 वोट मिले जबकि प्रकाश करात के प्रस्ताव को 55 वोट मिले.
यहां ये गौर करना जरूरी है कि अप्रैल में हैदराबाद में सीपीएम की कांग्रेस की अहम बैठक होना निर्धारित है. उससे पहले पार्टी की 2019 लोकसभा चुनाव की रणनीतिक लाइन तय करने पर पार्टी के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जाना था.
सीपीएम का कांग्रेस से दूरी बनाए रखने का फैसला सिर्फ सीताराम येचुरी के लिए ही झटका हो, ऐसा नहीं है. सीपीएम के इस अंदरूनी घमासान का सीधा असर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की 2019 लोकसभा चुनाव के लिए रणऩीति पर भी पड़ेगा.
जिन सहयोगियों के साथ मिलकर राहुल गांधी 2019 में मोदी को घेरना चाहते हैं वह सब बारी-बारी से छिटकते जा रहे हैं. विपक्षी खेमे के एक मजबूत नेता नीतीश कुमार पहले ही विपक्ष को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद करारी हार से समाजवादी पार्टी इस कदर बिदकी कि अब वह भी कांग्रेस के साथ कम से कम चुनाव के पहले तालमेल नहीं करना चाहती. शरद पवार की एनसीपी पर कांग्रेस भरोसा नहीं कर सकती क्योंकि महाराष्ट्र से लेकर गुजरात तक में एनसीपी कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी है और यह खबर आम है कि एनसीपी बीजेपी के करीब जा रही है.
ममता बनर्जी बीजेपी के खिलाफ जरूर लड़ रही है, लेकिन बंगाल की राजनीतिक को देखते हुए वह कांग्रेस के साथ कहां तक जाएगी यह कहना मुश्किल है. ओडिशा में नवीन पटनायक खुद ही मुश्किलों में घिरे नजर आते हैं लेकिन वह कांग्रेस के साथ जाने की बजाए अकेले ही चुनाव लड़ना पसंद करेंगे.
मायावती के बारे में कांग्रेस की अंदाजा नहीं लगा सकती कि वो कांग्रेस के साथ तालमेल करेंगी या नहीं और अगर करेंगी तो कांग्रेस को कितनी सीटें देना चाहेंगीं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के समय भी समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल होने से पहले कांग्रेस ने मायावती का मन टटोलने की कोशिश की थी लेकिन बात बनी नहीं थी.
तमिलनाडु में कांग्रेस जरूर उम्मीद कर रही होगी कि डीएमके उसके साथ आयेगी, लेकिन करुणानिधि परिवार और बीजेपी के बीच सुधरते हुए संबंध को देखकर कांग्रेस के नेता जरूर चिंता में होंगे.
लालू यादव और फारुख अब्दुल्ला जैसे नेता जरूर कांग्रेस के साथ होंगे लेकिन सीपीएम के भीतर कांग्रेस के खिलाफ प्रस्ताव पास होने से विपक्ष को एकजुट करने में कांग्रेस के प्रयासों को बड़ा झटका जरूर लगा है.