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2019 लोकसभा चुनाव में CPM से दोस्ती: कांग्रेस के लिए फायदा या नुकसान?

2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को करारी मात दी थी. कांग्रेस के इतिहास में सबसे बुरी हार थी. 2019 में कांग्रेस सहित सभी बीजेपी विरोधी दल एक जुट होने की कवायद में लगे हैं. वामदलों का प्रभाव लगातार देश में कम हो रहा है. लेफ्ट विचारों वाले सियासी दल अपने वजूद को बचाने की जद्दोजहद कर रहे है. ऐसे में उन्हें कांग्रेस एक सहारा नजर आ रही है.

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी

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2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से सियासी बिसात बिछाई जाने लगी हैं. जबकि चुनाव में 18 महीने बाकी हैं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ वामपंथी दल सीपीएम कांग्रेस के साथ चुनावी रण में उतरने का मन बना रही है. ऐसे में कांग्रेस और सीपीएम नजदीक आते हैं तो कई ऐसे राजनीतिक दल भी हैं जो कांग्रेस से दूर रहेंगे. सीपीएम के लिए सवाल ये है कि क्या वो कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार है. ऐसे में दोनों को क्या और कितना फायदा और नुकसान होगा. इसे लेकर भी सियासी नाप तौल जारी है.

बता दें कि कांग्रेस को लेकर सीताराम येचुरी और प्रकाश करात में मतभेद भी दिख रहे हैं. प्रकाश करात कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ हैं, वहीं सीताराम येचुरी चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन किया जाए, जिनमें कांग्रेस भी शामिल है. अब देखना है कि सियासी मजबूरी या फिर मजबूरी की राजनीति में सीपीएम क्या फैसला लेती है, और कांग्रेस क्या उसके प्रस्ताव को स्वीकार करती है.

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लेफ्ट विरोधी दल होंगे कांग्रेस से दूर

2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को करारी मात दी थी. कांग्रेस के इतिहास में सबसे बुरी हार थी. 2019 में कांग्रेस सहित सभी बीजेपी विरोधी दल एकजुट होने की कवायद में लगे हैं. वामदलों का प्रभाव लगातार देश में कम हो रहा है. लेफ्ट विचारों वाले सियासी दल अपने वजूद को बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें कांग्रेस एक सहारा नजर आ रही है. इसीलिए वामपंथी दल कांग्रेस के साथ गठबंधन की दिशा आगे बढ़ने का मन बना रही है.

CPM से ज्यादा TMC का वोट

कांग्रेस अगर वाम दलों के साथ गठबंधन करती है तो ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC उससे दूर रहना पसंद करेगी. पश्चिम बंगाल की सियासत में ममता बनर्जी की सियासी लड़ाई वामपंथी दलों से है. ऐसे में जहां वाम दल होंगे वहां TMC का रहना मुश्किल माना जा रहा है. 2014 के वोट फीसदी को देखें तो सीपीएम से ज्यादा वोट TMC को मिला है.

वोट फीसदी में TMC देश की चौथी पार्टी थी, जिसे 3.8 फीसदी वोट मिले थे. वहीं सीपीएम सातवें नंबर की पार्टी थी, उसे 3.2 फीसदी वोट मिले थे. जबकि TMC का मूल आधार पश्चिम बंगाल है और सीपीएम का पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा सहित कई राज्यों में चुनाव लड़ते हैं इसके बावजूद TMC का वोट फीसदी ज्यादा है. इस तरह देखा जाए तो कांग्रेस के लिए लेफ्ट से ज्यादा TMC फायदा दिला सकती है.

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कांग्रेस के पुराने सहयोगी हो जाएंगे दूर

केरल की सियासत में कांग्रेस और लेफ्ट एक दूसरे के विरोधी है. कांग्रेस के साथ जो भी राजनीतिक दल केरल में है, वह सबके सब लेफ्ट से दूर है. इंडियन मुस्लिम लीग, केरला कांग्रेस, सहित कई ऐसे राजनीतिक दल है जो सीपीएम नेतृत्व वाले LDF गठबंधन के विरोधी है. ऐसे में कांग्रेस और सीपीएम के बीच दोस्ती होती है तो ये राजनीतिक दल कांग्रेस से जुदा हो सकती है.

बीजेडी भी नहीं आएगी पास

ओडिशा की सियासत में बीजू जनता दल का अपना मजबूत आधार है. बीजेडी और सीपीएम एक दूसरे के मुखालिफ पार्टी है. ओडिशा की राजनीति में बीजेपी लगातार अपने पैर पसार रही है. ऐसे में BJD लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी के विरोधी गुट में जाने की दिशा में सोच रही है, लेकिन साथ ही वह लेफ्ट से भी दूरी बनाकर रखना चाहती है. ऐसे में कांग्रेस और लेफ्ट साथ आते हैं तो BJD इस गठबंधन से दूर रहेगी. 2014 के चुनाव में BJD के वोट फीसदी को देखते हैं तो 1.7 फीसदी राष्ट्रीय स्तर है.

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