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अखिलेश के राज में उत्तर प्रदेश में बढ़ा 'गुंडा-राज'

जब समाजवाद समाज की परवाह करना छोड़ दे. जब सरकार सोचना बंद कर दे इंसाफ के बारे में तो सबसे पहले मुख्यमंत्री पर सवाल उठते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार की उन्हीं हिमाकतों का हिसाब मांग रही है.

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अखिलेश
अखिलेश

जब समाजवाद समाज की परवाह करना छोड़ दे. जब सरकार सोचना बंद कर दे इंसाफ के बारे में तो सबसे पहले मुख्यमंत्री पर सवाल उठते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार की उन्हीं हिमाकतों का हिसाब मांग रही है.

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अपराध और अपराधियों के सामने अखिलेश यादव ने आत्मसमर्पण सा कर दिया है. इन चार 'अ' के अनमोल अनुप्रास ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में आतंक को ऐसा अलंकार बना दिया है कि पूछना पड़ता है, क्या अखिलेश ने डूबो दिया?

स्वयंभू राजा के अपराध की सल्तनत में लोकतंत्र के सुल्तान के ऐसे समर्पण की वजह क्या है. इसकी जड़ें अखिलेश की नौजवानी में हैं या मुलायम की मोहब्बत में.

57 मंत्रियों में 30 भारतीय दंड संहिता के सताए हुए हैं. क्या हैरत अगर 40 के मुख्यमंत्री के माथे पर छह महीने के भीतर 2437 हत्याओं का मुकुट था.

भले उत्तर प्रदेश अपराध प्रदेश में बदल गया हो, लेकिन मुलायम के लिए ये बेटे का सवाल है और रामगोपाल यादव के लिए भतीजे का. सत्ता की पारिवारिक पेशकश में सामाजिक सुरक्षा सिर्फ एक इत्तफाक होती है.

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भारतीय राजनीति में एहसान का ईनाम बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. दिल्ली गैंगरेप पर आखों में आंसू भरकर आह बोलने वाली जया बच्चन की बोली बता देगी कि कलंक की इतनी घनी कालिख के बावजूद अखिलेश के इत्मीनान की वजह क्या है.

कुंडा से लखनऊ के बीच गायब लोकतंत्र बता रहा है कि न राजा खत्म हुए हैं और न राजतंत्र. फर्क सिर्फ इतना है कि अब राजाओं ने चुनावी जीत की चूनर ओढ़ ली है. इसलिए उसकी वंदना भी करनी होगी और जय भी बोलना होगा.

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