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राजनीति के अपराधीकरण पर SC सख्त, केंद्र- चुनाव आयोग से मांगा जवाब

उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और संपत्ति आदि का ब्योरा मीडिया में प्रकाशित प्रचारित करने के आदेश पर अमल न होने का मुद्दा उठाने वाली अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो- इंडियाटुडे आर्काइव)
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो- इंडियाटुडे आर्काइव)

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए कड़ा कानून बनाने के उसके आदेश पर आज तक अमल क्यों नहीं किया गया. पिछले साल सितंबर में 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह गंभीर अपराध में शामिल लोगों के चुनाव लड़ने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने के लिए तत्काल कानून बनाए.

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए कोर्ट के आदेश के बावजूद पिछले छह महीने में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया. उपाध्याय की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने भारत सरकार के कैबिनेट सचिव और विधि सचिव से जवाब मांगा है.

उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और संपत्ति आदि का ब्योरा मीडिया में प्रकाशित प्रचारित करने के आदेश पर अमल न होने का मुद्दा उठाने वाली दूसरी अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. कोर्ट ने उपाध्याय की अवमानना याचिका में उठाए गए मामले को गंभीर बताते हुए तीन चुनाव उपायुक्तों को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब मांगा है.

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ये आदेश न्यायमूर्ति आरएफ नारिमन और विनीत शरण की पीठ ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई के बाद दिया. अवमानना याचिका में उपाध्याय ने कहा है कि सरकार ने गत वर्ष 25 सितंबर के उस आदेश का पालन नहीं किया है, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि गंभीर और जघन्य अपराधों में अदालत से आरोप तय होने वाले लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने और उनकी सदस्यता खत्म करने के लिए सरकार सख्त कानून बनाए. इस याचिका में उपाध्याय ने कैबिनेट सचिव और विधि मामलों के सचिव को प्रतिपक्षी बनाया है.

उपाध्याय की दोनों अवमानना याचिकाएं वास्तव में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के गत वर्ष 25 सितंबर के निर्देशों पर अमल न होने के मामले में हैं. 25 सिंतबर के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि प्रत्येक उम्मीदवार नामांकन भरने के बाद कम से कम 3 बार अखबार में अपने आपराधिक ब्योरे और अन्य जानकारियों वाले हलफनामे का ब्योरा प्रकाशित कराएंगे और इसके अलावा समाचार चैनल मे भी 3 बार इसे प्रसारित कराएंगे ताकि मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी हो सके. कोर्ट ने यह भी कहा था कि साथ ही राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर उम्मीदवार का यह ब्योरा अपलोड करेंगे. अखबार और समाचार चैनलों में भी प्रकाशित करेंगे.

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उपाध्याय ने अवमानना याचिका में आरोप लगाया है कि कोर्ट के इस आदेश का पिछले दिनों हुए पांच विधानसभा चुनावों में ठीक से पालन नहीं हुआ है. उनका कहना है कि चुनाव आयोग ने इस बारे में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी कर यह नहीं बताया है कि उम्मीदवार किन अखबारों में ब्योरा प्रकाशित कराएंगे और किन समाचार चैनलों में किस समय ब्योरा प्रसारित किया जाएगा.

शुक्रवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि आयोग अपना जवाब दाखिल करेगा. कोर्ट ने उनसे एक सप्ताह मे जवाब देने को कहा.

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