बिहार की राजनीति में माफिया का परचम बहुत पहले से लहरा रहा है. आलम ये है कि कोई भी दल उस परचम को नीचे होते नहीं देखना चाहता. ताजा उदाहरण है बिहार विधानपरिषद चुनाव, जहां 24 सीटों पर होने वाली भिड़ंत में जेडीयू-राजद गठबंधन और एनडीए दोनों ने अपराधियों को टिकट देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
एनडीए के घटक एलजेपी ने जहां एडमिशन माफिया रंजीत डॉन की बीवी को नालंदा से टिकट दिया है, वहीं जेडीयू के विधान पार्षद और भोजपुर के बाहुबली हुलास पांडे भी एनडीए के टिकट पर आरा सीट से मैदान में उतर रहे हैं. एक जमाने में पटना में आतंक के पर्याय रहे और अभी जेल में बंद रीतलाल यादव ने पटना से विधानपरिषद के लिए नामांकन किया है.
माना जा रहा है कि रीतलाल को आरजेडी का समर्थन हासिल है क्योंकि हालिया चुनावों के वक्त आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने रीतलाल को अपनी पार्टी का महासचिव बनाया था. हालांकि आरजेडी का कहना है कि रीतलाल को पार्टी से निकाला जा चुका है और गठबंधन के बाद ये सीट जेडीयू के खाते में है.
पटना, आरा के अलावा सीवान में भी शराब माफिया को टिकट दिया गया है. नीतीश-लालू गठबंधन ने आधे से ज्यादा टिकट अपराधियों को देकर साफ कर दिया है कि सुशासन बाबू और जंगलराज वाले बाबा एक होकर और खतरनाक हो गए हैं.
दूसरी ओर चाल-चरित्र और चेहरे का दम भरने वाली बीजेपी और उसके सहयोगियों ने भी आधे से ज्यादा दागी उम्मीदवार उतारकर बता दिया है कि उनकी चाल टेढ़ी, चरित्र गिरा, और चेहरा बदरंग हो चुका है.