आतंक का पर्याय बन चुके नक्सलियों से लोहा लेने वाली सीआरपीएफ की असिस्टेंट कमांडेंट ने एक बुजुर्ग की जान बचाकर जांबाजी दिखाई है. वैसे तो नक्सलियों से हर दिन ये कमांडो लोहा लेते हैं, लेकिन आम जीवन में भी ये किसी भी काम को यूं ही नहीं छोड़ते, उसे अंजाम तक पहुंचाते हैं.
जी हां, हम बात कर रहे हैं केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में पुरुषों की कंपनी को कमांड करने वाली मोनिका साल्वे की, जो एक बार फिर सुर्खियों में हैं. बिहार के जमुई में सीआरपीएफ की 215वीं बटालियन में तैनात मोनिका साल्वे ने इस बार जो काम किया उसने उन्हें साथियों के बीच ही लोकप्रिय नहीं किया, बल्कि वो प्रेरणास्त्रोत भी बन गई हैं.
घटना सोमवार सुबह 10 बजे के आसपास की है. जब महाराष्ट्र के बुलढाना की रहने वाली मोनिका साल्वे छुट्टियों में घर आई हुई थीं. मोनिका साल्वे बताती हैं कि वो अपनी मौसी को बस पर चढ़ाने के लिए घर के पास वाले बस स्टैंड पर पहुंची थीं तभी उन्होंने बगल में खड़े किसी व्यक्ति की मदद की पुकार सुनी.
उन्होंने मुड़कर देखा तो बेंच पर बैठे एक बुजुर्ग शख्स गिर रहे थे. मोनिका दौड़कर वहां पहुंची. बुजुर्ग बेहोशी की हालत में थे. उन्हें पसीना आ रहा था और सीने में दर्द हुआ था. मोनिका बताती हैं, 'मां की वजह से मेडिकल की समझ उनमें शुरू से ही थी. मां अस्पताल में नर्स थीं और अभी रिटायर हुई हैं. बुजुर्ग की हालत से स्पष्ट था कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है.'
मोनिका साल्वे ने लोगों की मदद से बुजुर्ग को वहीं लिटाया. उनकी शर्ट खुलवाई और कॉर्डियो पलमनरी रिससिटेशन देना शुरू कर दिया. उन्होंने कई बार बुजुर्ग के सीने को पूरे जोर से दबाया. मोनिका बताती हैं, 'मैंने करीब 100 बार ऐसा किया होगा और इतनी ताकत से कि मुझे खुद पसीना आ गया.'
मोनिका की ये कोशिश कामयाब रही. बुज़ुर्ग को न सिर्फ होश आया बल्कि वे उठकर बैठ भी गए. तब तक वहां किसी ने ऑटो बुला लिया था. जब मोनिका को पता चला कि बुजुर्ग के साथ वहां कोई नहीं है तो खुद उन्हें ले जाने का फैसला लिया. उस इलाके से वाकिफ मोनिका पास की ही डॉक्टर्स लेन पहुंचीं, जहां सहयोग अस्पताल के डॉक्टर्स उन्हें जानते भी थे.
मोनिका साल्वे कहती हैं कि डॉक्टर्स भी उस आपात स्थिति को समझ गए. सारा काम छोड़कर वो बुजुर्ग के ट्रीटमेंट में लग गए. कुछ देर में डाक्टरों ने ईसीजी वगैरह करने के बाद पुष्टि की कि दामोदर खरात नाम के इस बुजुर्ग को हार्ट अटैक आया था. उनको आगे के इलाज के लिए वहीं भर्ती किया गया.
मोनिका की मां कर रही हैं बुजुर्ग की देखभाल
मोनिका साल्वे की छुट्टियां खत्म हो रही थीं और उन्हें अगले दिन जमुई की ट्रेन पकड़नी थी. इसलिए वो बुजुर्ग की देखभाल का जिम्मा वो अपनी मां को सौंप कर चली गईं. बुजुर्ग के पास न पैसा था और न ही कोई रिश्तेदार था. बुधवार को उनकी मां ने अस्पताल जाकर बुजुर्ग से और इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की. बुजुर्ग की एंजियोग्राफी होनी थी. सौभाग्य से उनके पास अपने नाम का राजीव गांधी हेल्थ कार्ड था. कुछ अस्पताल ने भी इलाज के बिल में छूट दी और बुजुर्ग दामोदर खरात का इलाज शुरू हो गया. मोनिका अब जमुई पहुंच गई हैं, लेकिन दामोदर खरात का हालचाल जानने के लिए मां से संपर्क में हैं.
कौन हैं मोनिका साल्वे
30 वर्षीय मोनिका साल्वे (जन्म 19 मार्च 1989) महाराष्ट्र के बुलढाना में रहने वाले महाराष्ट्र पुलिस के एक सहायक सब-इंस्पेक्टर की चार संतानों में इकलौती बेटी हैं. तीनों भाई अलग-अलग बैंकों में कृषि अधिकारी हैं, लेकिन पिता की वर्दी से प्रभावित मोनिका को हमेशा वर्दीधारी नौकरी करने का ही मन था. मोनिका बताती हैं, 'पिता का सपना रहा कि मैं आईपीएस अधिकारी बनकर दिखाऊं. कोशिश की थी. परीक्षा भी दी लेकिन कामयाबी नहीं मिली. सीडीएस की भी कोशिश की थी.' हालांकि मोनिका और उनके पिता का सपना 2015 में तब पूरा हुआ जब सीआरपीएफ की परीक्षा पास की. इसके बाद ट्रेनिंग और फिर 2017 से जमुई में तैनाती.
ड्यूटी के अलावा ये करती हैं मोनिका
काफी पिछड़े और नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में मोनिका अपनी रोजमर्रा की ड्यूटी के अलावा यहां के स्थानीय निवासियों और खास तौर से महिलाओं व बच्चों के साथ उनके कल्याण के काम भी करती हैं. शिक्षा, पर्यावरण और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में लोगों को जागरूक करना उनका प्रिय काम है.
आदिवासी महिलाओं से उनके रोजमर्रा के काम में आने वाली दिक्कतों को समझना और उनका समाधान करने में आगे आना मोनिका की दिलचस्पी का एक और काम है. मोनिका कहती हैं, 'ये सब करते-करते ढाई साल कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला.' हाल ही में उन्होंने यहां 40 छात्रों के हॉस्टल में विशेष स्टडी रूम बनवाया. उनके लिए लाइब्रेरी बनवाई और साथ ही किताबों का बंदोबस्त किया. इसके लिए उन्होंने अपने इंजीनियर मित्रों से भी मदद ली, जिनमें से कुछ एक तो विदेश में हैं.