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दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ की बटालियन ने की थी नियमों की अनदेखी

दंतेवाड़ा में गत छह अप्रैल को हुए अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले में अपने 75 जवानों को खो चुके केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की उस बटालियन ने क्षेत्र को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त कराने के अपने अभियान के दौरान हर बुनियादी नियम की अनदेखी की थी जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी.

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दंतेवाड़ा में गत छह अप्रैल को हुए अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले में अपने 75 जवानों को खो चुके केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की उस बटालियन ने क्षेत्र को नक्सलियों के प्रभाव से मुक्त कराने के अपने अभियान के दौरान हर बुनियादी नियम की अनदेखी की थी जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी.

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सूत्रों ने बुधवार को बताया कि उपलब्ध सुबूतों के आधार पर यह बात सामने आई है. इस मामले की जांच कर रहे ई. एन. राममोहन को हाल में उनकी दंतेवाड़ा यात्रा के दौरान सौंपे गए वारदात से जुड़े दस्तावेज बताते हैं कि सीआरपीएफ की टुकड़ी ने पूरा दिन एक ही जगह पर ठहर कर मुसीबत को दावत दी थी.

सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ पुलिस के एक हेड कांस्टेबल समेत सीआरपीएफ का 81 सदस्यीय दल अभियान के लिये लॉग बुक में दर्ज चार अप्रैल की शाम सात बजे रवाना नहीं हुआ था. उन्होंने बताया कि जंगलों में अलसुबह नहीं जाने की साफ हिदायत के बावजूद सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन के 75 जवानों समेत 76 सुरक्षाकर्मियों ने अगले दिन सुबह पांच बजे जंगल में आगे बढ़ना शुरू किया था. {mospagebreak}

उपलब्ध दस्तावेजों से पता लगता है कि सीआरपीएफ की टुकड़ी ने पूरा दिन एक ही मैदान में गुजारा था जहां छह अप्रैल को नक्सलवादियों ने उन्हें अपनी गोलियों का निशाना बनाया था. सूत्रों ने बताया कि सीआरपीएफ दल के वरिष्ठ अधिकारियों ने पास के मुकराम गांव के मुखिया समेत कुछ लोगों को बुलाकर उनसे पूरी टीम के लिये खाना बनाने के लिये बड़े बर्तन मांगे थे.

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गौरतलब है कि सीआरपीएफ और पुलिस बलों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे जंगलों में अभियान के दौरान किसी भी ग्रामीण या स्थानीय व्यक्ति की मदद न लें और जहां तक मुमकिन हो, गोपनीयता बनाए रखें. सूत्रों के मुताबिक सीआरपीएफ की टुकड़ी के जवान इस हिदायत की अनदेखी करके पूरा दिन एक ही मैदान में गुजारने के बाद पास में बने ‘आश्रम’ में चले गए थे और उन्होंने ग्रामीणों को चारपाई तथा अन्य सामान मुहैया कराने को भी कहा था.

मामले की जांच कर रही एक सदस्यीय समिति ने मुकराम गांव के निवासियों से बातचीत भी की जिसमें कई नए तथ्य सामने आए. केन्द्र ने राममोहन द्वारा इस मामले की जांच के आदेश दिये थे जिसकी रिपोर्ट 26 अप्रैल को सौंपी गई थी. रिपोर्ट में इस घटना का कारण छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ के बीच तालमेल की कमी होना बताया गया था.

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