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औरंगाबाद नक्सली हमला: जवानों को दी जाने वाली सुविधाओं पर उठे कई सवाल

नक्सल इलाकों में गश्त लगा रहे सीआरपीएफ जवानों की मेडिकल किट में क्लॉट नाम की खून रोकने वाली दवा तो होती है लेकिन उन इलाकों में इलाज की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती. इसका तरोताजा नमूना दिखा सोमवार को औरंगाबाद में हुए नक्सली हमले के बाद जहां जवानों को इलाज के लिए मीलों दूर पटना और रांची ले जाया गया.

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नक्सल इलाकों में गश्त लगा रहे सीआरपीएफ जवानों की मेडिकल किट में क्लॉट नाम की खून रोकने वाली दवा तो होती है लेकिन उन इलाकों में इलाज की मुकम्मल व्यवस्था नहीं होती. इसका तरोताजा नमूना दिखा सोमवार को औरंगाबाद में हुए नक्सली हमले के बाद जहां जवानों को इलाज के लिए मीलों दूर पटना और रांची ले जाया गया.

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इस बात में कोई शक नहीं कि नक्सल इलाकों में मौजूद जवानों की जान पर बनी रहती है. फिर भी हमले में घायल जवानों को जिस स्तर की चिकित्सीय सुविधा दी जानी चाहिये वह इन इलाकों में नहीं होती. बिहार के औरंगाबाद में हुए नक्सली ब्लास्ट के बाद ये बात एक बार फिर जगजाहिर हो गई. सीआरपीएफ जवानों की इलाज में देरी पर सरकार आरोपों के घेरे में है. सवाल उठ रहे हैं कि हमले में घायल जवानों के तुंरत राहत की क्या व्यवस्था होती है? क्या घायल जवानों के बहते खून को रोकने की दवा उनके पास होती है? और अगर रहती है तो क्या औरगंबाद के ब्लास्ट के बाद उसका इस्तेमाल हुआ था?

सीआरपीएफ के गया रेंज के डीआईजी चिंरजीवी प्रसाद के मुताबिक जवानों के पास मेडिकल किट में हमले के बाद बहते खून को रोकने के लिए क्लॉट नाम की दवा होती है और औरंगाबाद के ब्लास्ट के बाद भी इस दवा का इस्तेमाल हुआ था. डीआईजी ने कहा कि घटनास्थल के मुआयने बाद उन्हें वहां पर इस क्लॉट नाम की दवा के रैपर और किट भी मिले. साथ ही डीआईजी ने दावा किया कि उनके पास पर्याप्त मात्रा में ये दवा होती है.

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हालांकि औरंगाबाद के डीएम ने आजततक से खास बातचीत में माना है कि घायलों को प्राथमिक उपचार तो सीआरपीएफ की तरफ से मिला लेकिन जिस तरह के जख्म उन्हें लगे थे उनका इलाज जिले में मौजूद नहीं था. इसलिये उन्हें रांची और पटना ले जाना पड़ा.

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