30 साल बाद देश के किसी खास हिस्से में अगर प्रधानमंत्री गए हों तो निश्चित तौर पर उम्मीदें बढ़ जाती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को माओवादी समस्या से ग्रसित छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के दंतेवाड़ा पहुंचे. ऐसे में वहां के स्थानीय लोगों के साथ-साथ सीआरपीएफ के उन जवानों की भी उम्मीदें बढ़ी हैं, जो वहां नक्सलियों से लड़ने के लिए तैनात हैं.
साल 2015 की बात करें तो अब तक 51 लोग नक्सली हिंसा का शिकार हो चुके हैं. चौंकाने वाली खबर यह भी है कि पीएम मोदी के पहुंचने के कुछ समय पहले ही नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले स्थित मरेंगा गांव के 300 लोगों को बंधक बना लिया. पीएम मोदी ने लोगों से बंदूक छोड़ कलम पकड़ने की गुजारिश की , शांति के साथ विकास की बात रखी.
दंतेवाड़ा से कुछ ही दूरी पर CRPF की एक कंपनी है. यहां तैनात जवानों ने भी पीएम मोदी के दौरे से उम्मीदें बांध रखी हैं. यहां की पोस्टिंग के दौरान होने वाली दिक्कतों पर सीआरपीएफ के तीन जवानों (बदला हुआ नाम) ने हमसे बात की.
यहां हमार शिकार होता है
हेड कॉन्सटेबल अहमद ने बताया, 'इसके पहले मैं जम्मू-कश्मीर में तैनात था. वहां की लड़ाई पैसे और खुफिया तंत्र के दम पर लड़ी जाती है. वहां हम आतंकवादियों का शिकार करते थे, यहां जब हम पेट्रोलिंग पर निकलते हैं तो ऐसा लगता है मानो हमारा शिकार होने वाला है. हमें नक्सलियों की भाषा समझ में नहीं आती. हम लोगों की सहायता के बावजूद स्थानीय लोग नक्सलियों का समर्थन करते हैं.'
छुट्टियां उत्सव के समान
कॉन्सटेबल सुरेश बताते हैं, 'हम यहां अपना समय काट रहे हैं. यह हमारी लड़ाई नहीं है. पुलिस में स्थानीय लोग हैं, यहां की भाषा भी जानते हैं, उन्हें आगे रहकर लड़ाई लड़नी चाहिए, पर वो ऐसा नहीं करते हैं.' अहमद सीआरपीएफ में सामंजस्य की कमी की ओर भी इशारा करते हैं. साथ ही खुफिया तंत्र का न होने को भी एक बड़ी समस्या मानते हैं. इन हालातों में जिन लोगों को छुट्टियां मिलती हैं, उनके लिए यह एक उत्सव के समान होता है.
हेलिकॉप्टर सेवा न के बराबर
भारतीय वायु सेना के 6 MI-17 हेलिकॉप्टर सीआरपीएफ को ऑपरेशन त्रिवेणी के तहत दिए गए हैं. इसके अलावा भी सीआरपीएफ ने हेलिकॉप्टर सर्विस ली है, पर यह नाकाफी है. अहमद बताते हैं, 'हमने अपने साथियों को हेलिकॉप्टर के इंतजार में मरते देखा है.' अहमद के अनुसार कई बार ऐसा होता है कि हम हेलिकॉप्टर की लैंडिंग के लिए जमीन तैयार (अस्थाई हेलीपैड) करते हैं, लेकिन पायलट उतरने से मना कर देते हैं.
बच गए तो सौभाग्य, नहीं तो...
रत्नेश कहते हैं, 'मैं यहां दो सालों से हूं. घर जाने तक को हमारे पास कोई सुविधा नहीं है. हमें लोकल बसों से जाना होता है.' इन हालातों में जीना बहुत मुश्किल है. अहमद बताते हैं, 'घर वाले हमारी सलामती की प्रार्थना करते हैं. अगर हम सही-सलामत घर लौट गए तो भाग्यशाली हैं, अगर नहीं तो भी ठीक है.'