'डिजिटल इंडिया' के सपने को हकीकत में बदलने पर सरकार का बहुत जोर है. खास तौर पर जब से नोटबंदी का ऐलान हुआ है, तब से भुगतान के लिए कैश की जगह डिजिटल तरीके अपनाने पर फोकस है. कैशलेस इकोनॉमी और डिजिटल करेंसी की ओर कदम बढ़ाने के साथ ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बढ़ेगा. ऐसे में साइबर आर्थिक अपराध बढ़ने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन साइबर अपराधों से निपटने के लिए सरकार कितनी गंभीर है, यह इसी से पता चलता है कि साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन का पद बीते साढ़े पांच साल से खाली पड़ा है.
अगर कोई साइबर आर्थिक अपराध का शिकार होता है तो सबसे पहले बैंक और पुलिस का दरवाजा खटखटाता है. पुलिस का साइबर सेल केस को क्रैक कर अपराधी को सजा भी दिलवा देता है, लेकिन पीड़ित को आर्थिक नुकसान की भरपाई कैसे हो? ऑनलाइन कैश के ट्रांजेक्शन की स्थिति में किसी तरह की धोखाधड़ी हुई तो फिलहाल न्याय पाना बहुत टेढ़ी खीर है.
स्थिति यह है कि साइबर अपराध की सुनवाई के लिए बने साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में आखिरी चेयरपर्सन जस्टिस राजेश टंडन 30 जून 2011 को रिटायर हुए थे. उस दिन के बाद से ये पद खाली पड़ा है. सरकार ने साइबर अपील ट्रिब्यूनल का गठन 2006 में किया था. 2009 से इसे बहुसदस्यीय कर दिया गया. फिलहाल ट्रिब्यूनल में दो सदस्य- ज्यू़डिशियल मेंबर और टेक्निकल मेंबर हैं. ट्रिब्यूनल संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन वैधानिक संगठन है.
सीएजी ने जताई थी चिंता
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की ओर से नवंबर में संसद में रखी गई रिपोर्ट में भी साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन की लंबे समय से नियुक्ति नहीं किए जाने पर चिंता जताई गई है. रिपोर्ट के मुताबिक इस वजह से ट्रिब्यूनल के पास लंबित पड़े मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है. CAG की रिपोर्ट में कहा गया कि चेयरपर्सन की नियुक्ति नहीं किए जाने और दूसरे मेंबर्स को बेंचों के गठन और अपीलों के निस्तारण का अधिकार नहीं होने की वजह से ट्रिब्यूनल बनाए जाने का औचित्य ही बेमानी हो रहा है.
CAG की रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि अप्रैल 2011 से मार्च 2016 तक वेतन, किराए जैसी ट्रिब्यूनल से जुड़ी मदों में 27.64 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक ये जो खर्च हुआ उसमें 80 फीसदी हिस्सा तो ट्रिब्यूनल के दफ्तर का किराया देने में लग गया, जो कि दिल्ली के कनॉट प्लेस में है. साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने सरकार से ट्रिब्यूनल में चेयरपर्सन की जल्दी नियुक्ति की मांग करते हुए कहा है कि बिना ऐसे किए लंबित मामलों की न तो जांच हो पायेगी और ना ही डिजिटल इंडिया का सपना आगे बढ़ पाएगा.
हाईकोर्ट ने भी दिया है निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट भी केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन की जल्दी नियुक्ति के लिए निर्देश दे चुका है. 3 दिसबर 2015 को दिल्ली
हाईकोर्ट ने कहा था कि लंबित मामलों को निपटाने के लिए चेयरपर्सन की नियुक्ति जरूरी है. हाईकोर्ट के निर्देश को भी एक साल से ऊपर
बीत गया है, लेकिन इस पद पर नियुक्ति का मामला अब भी जस का तस है.