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मुस्लिम महिलाओं का खतना: सुप्रीम कोर्ट में 30 जुलाई को होगी सुनवाई

गुजरात और महाराष्ट्र में ज्यादातर बसे दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 30 जुलाई को सुनवाई करेगा.

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प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो

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गुजरात और महाराष्ट्र में ज्यादातर बसे दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 30 जुलाई को सुनवाई करेगा.

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा धर्म के नाम पर कोई किसी महिला या लड़की के यौन अंग कैसे छू सकता है. यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि धर्म की आड़ लेकर मासूम लड़कियों का खतना करना जुर्म है. केंद्र सरकार इस पर रोक का समर्थन करती है. केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इसलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी था. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिवारी ने कहा कि भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हुए हैं. ऐसे में मासूम बच्चियों के अधिकारों की रक्षा करना सरकार का दायित्व और कर्तव्य है.

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याचिका के मुताबिक, लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है.  क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है. लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई है.

याचिका में कहा गया कि ये तो अमानवीय और असंवेदनशील है. लिहाजा इस पर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाए तब तक कोर्ट गाइड लाइन जारी करे. इस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि कानून तो पहले से ही है. लेकिन इसमें मौजूद प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है. ताकि मौजूदा दौर के मुताबिक उसे समसामयिक और उपयोगी बनाया जा सके.

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