तेरह साल पहले आगरा शिखर सम्मेलन में परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के बीच दाउद इब्राहिम पर बातचीत शुरु हुई तो शिखर वार्ता एक तरह से ढह गई. लेकिन 13 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दाउद पर शिकंजा कसने की एक बार फिर मजबूत पहल की है.
साल 2001 में जब आडवाणी ने दाउद के खिलाफ मुहिम छेड़ा था, तब ये मुहिम इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर अजीत डोवाल के हाथ में थी. डोवाल ने दाउद को भारत लाने के लिए अपनी सारी ताकत भी झोंक दी थी, लेकिन ऐन वक्त पर सरकार बदल गई और डोवाल की किस्मत भी. अब 13 तेरह साल बाद डोवाल फिर सरकार में हैं और टारगेट दाउद इब्राहिम है.
दाउद के लिए बुरी खबर
दरअसल, हिन्दुस्तान के अंडरवर्ल्ड पर अजीत डोवाल जैसी पकड़ शायद ही किसी खुफिया ब्यूरो के अफसर की रही हो. डी कंपनी के कई गुर्गों के खिलाफ अजीत डोवाल बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं. अबू सलेम को हिन्दुस्तान लाने में भी डोवाल ने अहम भूमिका निभाई थी. दाउद के लिए सबसे बुरी खबर ये है कि आज अजीत डोवाल हिन्दुस्तान की खुफिया एजेंसियों के सबसे बड़े बॉस हैं और नरेंद्र मोदी के सबसे खास सलाहकार. सूत्रों के मुताबिक सरकार दाउद इब्राहिम और उसके गिरोह पर चौतरफा दबाव बना रही है.
नेपाल में डी कंपनी के सभी संपर्क ध्वस्त कर दिए गए हैं. बंग्लादेश में इंटेलिजेंस ब्यूरो और रॉ ने डी कंपनी के नेटवर्क पर शिकंजा कसा है. श्रीलंका में डी कंपनी के ड्रग्स और जाली करेंसी के कारोबार की रीढ़ तोड़ी जा रही है. दुबई में दाउद इब्राहिम के पुराने साथियों को एजेंसियों ने रडार पर रखा है. पाकिस्तान से सटे सीआईएस देशों का भारतीय एजेंसियों ने संपर्क सूत्रों का नया जाल बुना है. भारत ने खासकर मुंबई और दक्षिण भारत में दाउद के गुर्गों पर एजेंसी की बारीक निगाह है.
आईबी सूत्रों का कहना है कि दाउद इब्राहिम का दाहिना हाथ छोटा शकील है. छोटा शकील मौजूदा वक्त में देश के धनकुबेरों से पैसे वसूल रहा है. छोटा शकील की टेलिफोन पर इस तरह की कई एक्सटॉर्शन कॉल सुरक्षा एजेंसियों ने टैप की हैं. छोटा शकील की हिन्दुस्तान में फैले नेटवर्क से एजेंसियों को पिछले कुछ महीनों में दाउद इब्राहिम के बारे अहम जानकारियां मिली है. ऐसा कहा जाता है कि दाउद इब्राहिम पिछले कुछ वक्त से बीमार है और पाकिस्तान में बेहतर इलाज की तलाश में वो कराची और इस्लामाबाद के बीच आमद रफ्त करता है.
सवाल इतना ही है कि दाउद के आमद रफ्त की जानकारी हिन्दुस्तान को है, लेकिन पाकिस्तान की सरजमीं पर ओसामा बिन लादेन जैसा कोई अमेरिकी ऑपरेशन करना क्या फिलहाल मुमकिन है. ये सवाल अजीत डोवाल ही नहीं मोदी के लिए भी एक चुनौती है.