अहमदाबाद में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की तादाद बढ़कर 136 हो गई है जबकि करीब दो सौ लोगों का इलाज अस्पताल में चल रहा है. मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जिस जहरीली शराब ने कहर बरपाया है, वो पड़ोस के खेड़ा जिले के मेहमदाबाद से आया था. और इसे भेजनेवाला शख्स विनोद डगरी था जो अभी फरार है.
पुलिस का कहना है कि डगरी ने 1100 लीटर शराब में से 400 लीटर सिर्फ हरिशंकर कहार को भेजी थी जो पुलिस के शिकंजे में है. बाकी 700 लीटर अहमदाबाद के दूसरे अड्डों पर भेजी गईं थी. पुलिस के मुताबिक, अगर पूरी शराब लोग पीते तो मरनेवालों की तादाद तीन हजार से ज्यादा हो जाती.
पुलिस के सामने अब बची हुई जहरीली शराब को तलाश करने की सबसे बड़ी चुनौती है. मोदी सरकार ने इस मामले की जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस कमल मेहता की अध्यक्षता में एक आयोग भी बनाया है. आयोग को 30 नवंबर तक रिपोर्ट देने को कहा गया है.
शराबबंदी से होता है सरकार को घाटा
हर साल गुजरात में 15000 करोड़ रुपए का गैरकानूनी शराब का धंधा होता है. शराबबंदी के कारण सरकार को 1500 करोड़ का नुकसान होता है. देसी शराब की एक पाउच की कीमत महज 10 से तीस रुपए तक होती है. सिर्फ अहमदाबाद में ही 50 से ज्यादा गैरकानूनी अड्डे हैं. अहमदाबाद में हर दिन 50 लाख से ज्यादा का कारोबार होता है.
कैसे बनता है शराब
शराब बनाने के लिए सबसे पहले गुड़ मिले पानी में खमीर मिलाया जाता है और फिर उस पानी को सड़ने के लिए हफ्ते भर तक जमीन के नीचे गाड़ दिया जाता है. गुड़ मिला पानी जल्दी सड़े, इसके लिए उसमें फिटकिरी और कुछ दूसरे केमिकल मिलाए जाते हैं. सड़ने के बाद उस पानी को उबाला जाता है. उबालने से जो भाप बनती है, उसी को ठंडा करने से देसी दारू तैयार होती है.
इसी दारू को पॉलीथीन की छोटी-छोटी थैलियों में भर कर बाजार भेज दिया जाता है. लोग इसे शौक से पीते हैं, लेकिन वो ये नहीं जानते कि जरा सी भी चूक से अल्कोहल का केमिकल ढांचा बदल जाता है.
पैसे कम खर्च हों और माल जल्दी तैयार हो, इसके लिए शराब बनाने वाले खमीर की जगह यूरिया और जानवरों को दिए जाए वाले इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में इथाइल अल्कोहल की जगह मिथाइल अल्कोहल बन जाती है, जो जानलेवा हो जाती है. ये जानलेवा जहर पहले आंखों की रौशनी छीन लेती है, फिर किडनी खराब होती है और अंत में पीने वाले की जान चली जाती है.