मुंबइया फिल्म 'कयामत से कयामत तक' की कामयाबी के बाद के दशकों में 'कयामत' तो जैसे बिकाऊ माल हो गया. इस दुनिया ने कयामत तो अब तक देखी नहीं, पर कयामत आने के कयासों व गल्प-गाथाओं का सैलाब जरूर आ गया है.
कुछ लोगों का समूह यह मान रहा है कि इस 21 दिसंबर को दुनिया का अंत हो जाएगा, फिर कुछ भी नहीं बचेगा. हालांकि इस तरह की कोरी भविष्यवाणियों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
दूसरी ओर, अपने-अपने गमों के बोझ से दबे लोग यही मानकर चल रहे हैं कि इतनी जल्द उनके गमों का अंत किसी भी हालत में मुमकिन नहीं है. मामला तब और ज्यादा दिलचस्प हो गया, जब 20 दिसंबर को दिल्ली में भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए. ज्यादातर लोगों ने कुदरत की सामान्य घटना मानकर इसे ज्यादा 'भाव' नहीं दिया, पर कुछेक ने इसे भी कयामत से जोड़कर चुटकी ली.
वैसे खगोलविदों ने 21 दिसंबर को प्रलय की भविष्यवाणी वाली बात पूरी तरह से खारिज कर दी है. प्रसिद्ध खगोलविद्ध डीपी दुरई ने 21 दिसंबर को दुनिया के खात्मे की भविष्यवाणी को महज अफवाह करार देते हुए खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि अगला शुक्रवार भी एक सामान्य दिन होगा.
नासा के शिक्षाविद और एमपी बिरला तारामंडल के निदेशक दुरई ने कहा कि 21 दिसंबर को कुछ अलग माना जाएगा, क्योंकि यह शीत संक्रांति का दिन होगा और दुनिया इस दिन खत्म नहीं होने वाली.
उन्होंने कहा, ‘21 दिसंबर 2012 भी एक अन्य सामान्य दिन ही होगा. इसकी खासियत बस इतनी होगी कि इस दिन शीत संक्रांति होगी. इस अवसर पर सूर्य आकाश में दक्षिणतम बिंदु पर होगा और दिन की लंबाई सबसे छोटी होगी.’
दुरई ने कहा कि प्रलय की ये कहानियां इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए हाल के हफ्तों में दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई हैं और भारत भी इनसे कुछ अछूता नहीं है.
दुनियाभर में फैली इस अफवाह के बारे में खगोलविद ने कहा कि इस अफवाह के पीछे कई लोगों का यह यकीन है कि लातिन अमेरिका की माया सभ्यता के कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 को अंतिम दिन के रूप में दर्शाया गया है और इसके बाद धरती पर जीवन चक्र खत्म हो जाएगा. उन्होंने कहा कि धरती के नष्ट होने के बारे कई अन्य सिद्धांत भी प्रचलन में हैं. उनमें से एक यह है कि धरती और ‘निबुरू’ नामक सौरमंडल के एक ग्रह के बीच की टक्कर से यह नष्ट होगी. यह सौरमंडल अब तक खोजा नहीं जा सका है.
उन्होंने कहा, ‘खगोलविदों ने दूरबीनें और अंतरिक्ष संसूचकों की मदद से सौर मंडल का व्यापक सर्वेक्षण किया है. हमारे सौरमंडल में ऐसी कोई चीज नहीं मिली है जिसे हम परिकल्पित एक्स ग्रह या निबुरू कह सकें.’
उन्होंने कहा कि दिसंबर 2012 में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की ध्रुवीयता के उल्टे हो जाने और सौर उच्चिष्ठता होने के दावे के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. उन्होंने अन्य खगोलविदों के हवाला से कहा कि इस बार सौर उच्चिष्ठता में ज्यादा प्रबलता नहीं होगी इसलिए भूचुंबकीय क्षेत्र में किसी गड़बड़ी की आशंका नहीं है. उन्होंने यह भी कहा, ‘यह बात तय मानिए कि एक प्रबल सौर तूफान पृथ्वी की चुंबकीय ध्रुवीयता को उल्टा नहीं कर सकता.’
दुरई ने कहा, एक अन्य सिद्धांत में पृथ्वी, सूर्य और पृथ्वी की आकाशगंगाओं के केंद्र के एक ऐसे दुर्लभ संक्रेंद्रण की बात कही गई है जो बहुत ज्यादा गुरुत्वीय अस्थिरता पैदा कर देगा, लेकिन अभी तक ऐसी किसी व्यवस्था की खोज नहीं की जा सकी है. इसे विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि हर साल में एक बार पृथ्वी, सूर्य और आकाशगंगाओं केंद्र लगभग एक सीधी रेखा में आते हैं लेकिन इससे सूर्य के चारों ओर पृथ्वी या आकाशगंगाओं के चारों ओर सूर्य की गति की व्यवस्था में कोई फर्क नहीं पड़ता.
उन्होंने यह भी कहा, ‘1998 में ऐसी व्यवस्था एक बार बन चुकी है. ऐसा फिलहाल दोबारा नहीं होने जा रहा, इसलिए ऐसे किसी संरेक्षण से पृथ्वी के नष्ट होने की घटना भी बिल्कुल असंभव है.’
दुरई ने आगे कहा, ‘माया कलैंडर के द्वारा दर्शाया गया 21 दिसंबर 2012 दुनिया के अंत का दिन नहीं है. इसकी बजाय यह माया सभ्यता के लोगों के अनुसार एक युग का अंत है, जो कि 5,125 वर्ष के अंतराल या 13 बख्तुनों का था. एक बख्तुन लगभग 393 वर्ष का होता है.’ उन्होंने बताया कि माया सभ्यता के लोग मानते थे कि 13 बख्तुन खत्म होने के बाद एक नया युग शुरू होगा. आगे उन्होंने कहा, ‘इसलिए कुछ लोगों की ओर से 21 दिसंबर 2012 को धरती का आखिरी दिन बताने की बात को तो माया सभ्यता का भी समर्थन प्राप्त नहीं है.’