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सेना वापसी पर निर्णय 13 के बाद मुमकिन: उमर

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार 13 जुलाई को शहीद दिवस के बाद ही घाटी से सेना की तैनाती हटाने के विकल्प पर विचार करेगी. यह कदम उठाने से पहले स्थिति का आकलन किया जायेगा.

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जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार 13 जुलाई को शहीद दिवस के बाद ही घाटी से सेना की तैनाती हटाने के विकल्प पर विचार करेगी. यह कदम उठाने से पहले स्थिति का आकलन किया जायेगा.

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उन्होंने कहा, ‘‘अभी तक सेना को शहर में नहीं तैनात किया गया है. वह केवल बाहरी क्षेत्रों में है और उसे भी दो दिन पहले ही तैनात किया गया था.’’ उमर ने स्वीकार किया कि केन्द्र से सेना की सहायता मांगना सबसे कठिन निर्णय था. उन्होंने कहा कि वह अपने कार्यकाल में इस तरह के निर्णय को फिर नहीं लेना चाहेंगे.

यह पूछे जाने पर कि उनकी सरकार सेना हटाने के बारे में कब विचार करेगी, उमर ने कहा कि सरकार को उस स्तर का भरोसा हो जाने के बाद ही यह संभव होगा. घाटी में हिंसा बढ़ जाने के बाद मंगलवार रात को सेना बुलायी गयी थी.

उन्होंने कहा, ‘‘स्थिति पर दैनिक आधार पर नजर रखी जा रही है. हम 13 जुलाई के बाद उस विकल्प पर विचार करेंगे और निर्णय करेंगे.’’ 13 जुलाई को उन लोगों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है जो लोग डोगरा शासन के खिलाफ लड़ते हुए मारे गये थे.{mospagebreak}उमर ने पद त्यागने की संभावना से इनकार कर दिया. उन्होंने इन अटकलों को भी खारिज कर दिया कि उनके पिता एवं केन्द्रीय मंत्री फारुक अब्दुल्ला उनका पद संभालेंगे. यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने किसी समय हटने के बारे में सोचा था, ‘कई लोग चाहते हैं कि मैं हट जाऊं लेकिन मैं इस निर्णय के बारे में विचार नहीं कर रहा.’ मौजूदा स्थिति के बीच उनके पिता के शहर में आने और उनके मुख्यमंत्री संभालने के बारे में इच्छुक होने संबंधी खबरों पर उमर ने कहा कि जब उनके पिता कश्मीर में नहीं थे तब भी आलोचना हो रही थी.

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मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘और अब जबकि वह मेरी मां की पुण्यतिथि पर आ रहे हैं तो मेरे विरोधी अटकलें लगा रहे हैं.’’ उन्होंने इस सुझाव पर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि उन्होंने एवं उनके पिता को अपनी जिम्मेदारियां बदल लेनी चाहिए. उन्होंने इस सवाल पर भी चुप्पी साधे रखी कि क्या उन्हें उनकी पार्टी का समर्थन हासिल है.

उमर ने बेहद पीड़ा के साथ इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि पहले और दूसरे दिन सेना हवाई अड्डे के समीप तैनात थी और उसे कहीं अन्य जगह नहीं रखा गया था. उन्होंने कहा, ‘‘हमने मदद मांगी थी लेकिन हम इस बात को लेकर दृढ़ थे कि सेना का प्रदर्शनकारियों से सीधे आमना सामना न हो. लिहाजा हमने उनसे फ्लैग मार्च के लिए कहा. वह स्थिति को देखते हुए जरूरी था.’’{mospagebreak}राजनीतिक दलों से तोड़ने वाली भूमिका बंद करने की अपील करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सेना की मदद मांगने का निर्णय मासूमों की जान जाने से रोकने के प्रयासों के तहत गठबंधन भागीदारों, कैबिनेट मंत्री और अधिकारियों से व्यापक विचार विमर्श के बाद किया गया.

सेना को बुलाने के निर्णय की आलोचानाओं के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘मैंने हमेशा स्वस्थ्य आलोचना का स्वागत किया लेकिन मैं ऐसी आलोचना नहीं चाहता जिसमें विभाजनकारी राजनीति की बू आती हो. मैं सड़कों पर परेशानी नहीं चाहता लेकिन मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण थी.’’

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उमर ने कहा, ‘‘मेरे पास पुलिस बल और अर्धसैनिक बल है जिस पर मौजूदा अमरनाथ यात्रा के कारण काफी बोझ है. मैं विद्रोही गतिविधियों के खिलाफ अभियान से भी बल को नहीं हटा सकता क्योंकि उससे आतंकवादियों को घाटी में घुसने का मौका मिलेगा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लिहाजा मेरी सरकार ने राज्य एवं केन्द्रीय नेताओं से विचार विमर्श के बाद कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बरकरार रखने के लिए सेना की मदद मांगने का निर्णय किया.’’{mospagebreak}मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘पहनने वाले को ही पता चल सकता है कि जूता कहां से काट रहा है.’’ उमर ने कहा कि उन्होंने स्थिति और सेना की तैनाती के बारे में केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और रक्षा मंत्री ए के एंटनी से विचार विमर्श किया था.

हुर्रियत नेताओं की बातचीत पकडे जाने और उसमें कुछ मासूम लोगों की जान लिये जाने की बात होने के बारे में पूछे जाने पर जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘फिलहाल मैं राज्य में शांति चाहता हूं. इन मुद्दों पर बाद में विचार हो सकता है.’’ राज्य सरकार पर स्थिति से निपटने में अक्षम साबित होने के बारे में विपक्षी पीडीपी के आरोप पर उमर ने कहा, ‘‘तथ्य और आंकड़े तो कुछ और ही कहते हैं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘उस समय परेशानियां और आम नागरिकों की ज्यादा मौत हुई. पीडीपी सरकार उस समय सत्ता में थी जब भारत और पाकिस्तान के संबंध मधुर हो रहे थे. सडकें खोली गयी तथा पाकिस्तान एवं हुर्रियत के साथ बातचीत की गयी. कल्पना करिये कि उन्हें (तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती सईद को) कोई शिकायत नहीं थी लेकिन फिर भी लोगों की जानें जा रही थीं.’’

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