ओएनजीसी में बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को स्वतंत्र निदेशक नियुक्त करने को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. याचिका में शशि शंकर को ओएनजीसी का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त करने के आदेश को भी रद्द करने की मांग की गई है. अब कोर्ट ये फैसला करेगा कि याचिका स्वीकार योग्य है या नहीं, इस पर नोटिस किया जा सकता है या नहीं. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक संबित पात्रा बीजेपी के सक्रिय प्रवक्ता हैं वह ओएनजीसी में स्वतंत्र निदेशक नहीं बनाए जा सकते, ये नियमों के खिलाफ है.
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा को ONGC के स्वतंत्र डायरेक्टर के पद से हटाने और ONGC के मैनेजिंग डायरेक्टर शशि शंकर को हटाने की याचिका पर हाइकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि वो पेशे से डॉक्टर हैं और बीजेपी के प्रवक्ता हैं, इस पद के लिए 6 कैटेगरीज में वो कहीं भी फ़िट नहीं होते, लिहाज़ा इस पद के लिए संबित पात्रा उपयुक्त नहीं हैं.
केन्द्र सरकार ने कहा कि संबित पात्रा सरकार के साथ हेल्थ सर्विसेज के साथ तो जुड़े हुए हैं, साथ ही समाज के निचले तबके के उत्थान के लिए एनजीओ भी चला चुके हैं. राजनीतिक पार्टी से जुड़ा व्यक्ति सरकार के किसी विभाग से नहीं जुड़ सकता, ये कहीं भी नियम नही है. केंद्र ने कहा कि किसी भी कंपनी में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पान्सबिलिटी (CSR) के लिए भी स्वतंत्र डायरेक्टर्स को रखा जा सकता है. संबित पात्रा डॉक्टर हैं और ONGC के कर्मचारियों के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर काम कर सकते हैं या ONGC को सलाह दे सकते हैं.
याचिकाकर्ता ने कहा कि औसतन एक स्वतंत्र डायरेक्टर पर एक साल में ONGC करीब 23 लाख रुपये खर्च करती है. ये पब्लिक मनी है जिसे संबित पात्रा पर क्यों ख़र्च किया जाए जबकि वह इस क्षेत्र के विशेषज्ञ भी नहीं हैं. याचिका में ये भी कहा गया है कि ONGC के चैयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बनाये गए शशि शंकर की नियुक्ति को भी निरस्त किया जाए, क्योंकि उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप रहे हैं. जिसके लिए उन्हें महीनेभर के लिए सस्पेंड भी किया गया है. याचिका में कहा गया है कि सरकार कह रही है कि CVC के कहने पर शशि शंकर के ख़िलाफ़ जांच को बंद कर दिया गया है.
केंद्र सरकार ने कहा कि 2005 में शशि शंकर के ख़िलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिलने पर 2015 मे उन्हें दोबारा नौकरी पर बहाल कर दिया गया था. याचिका में जनहित से जुड़ा हुआ कुछ भी नहीं है. वरिष्ठ पदों पर बैठे हुए लोगों से जुड़ी हर जांच की हर जानकारी पब्लिक डोमेन में नहीं दी जा सकती. RTI में याचिकाकर्ता को बता दिया गया था कि जांच होने के बाद शशि शंकर को दोबारा बहाल कर दिया गया है. याचिका एनर्जी वॉचडॉग नाम के एनजीओ ने लगाई है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि वो बताएं कि जब CVC ने नियुक्ति के लिए इजाज़त दी हुई है तो शशि शंकर को क्यों इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता.