प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को नई दिल्ली स्थित नेशनल आर्काइव्स में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 100 फाइलें सार्वजिनक की. प्रधानमंत्री ने इन फाइलों का डिजिटल वर्जन जारी किया. शनिवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के मौके पर ये फाइलें सार्वजनिक की गईं. भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित 25 फाइलों की डिजिटल कॉपी को हर महीने सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है.
इस कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी से संबंधित 100 सीक्रेट फाइलों को नेताजी के परिजनों की मौजूदगी में सार्वजनिक किया. साथ ही पोर्टल भी लॉन्च किया, जिस पर ये सारे दस्तावेज डाले गए हैं- netajipapers.gov.in. हालांकि यह पोर्टल लॉन्च के तुरंत बाद ही क्रैश हो गया.
कांग्रेस पार्टी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली को लिखी गई जवाहरलाल नेहरू की कथित चिट्ठी को झूठ करार दिया है. कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि ये चिट्ठी झूठी है और सच्चाई सामने आनी चाहिए. आनंद शर्मा ने कहा कि इस चिट्ठी को सामने रखना शरारतपूर्ण है.
फाइलों के साथ चिट्ठी भी सार्वजनिक
गौरतलब है कि नेताजी से जुड़ी 100 सीक्रेट फाइलों को पीएम मोदी ने शनिवार को जारी किया था. इनमें देश के पहले पीएम नेहरू की एक चिट्ठी भी जारी की गई है जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली को लिखे पत्र में नेताजी को बताया था इंग्लैंड का युद्ध अपराधी. कांग्रेस ने इस कथित चिट्ठी को झूठा करार दिया है.
विमान हादसे में हुई थी मौत!
सीक्रेट फाइलों के सामने आने के बाद नेताजी की जिंदगी के कई रहस्यों पर से पर्दा उठने की उम्मीद बंधी है. इसके अनुसार, नेताजी की मौत के दावों की जांच के लिए बनी कमेटी ने 11 सितंबर 1956 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. जिसके अनुसार, 18 अगस्त 1945 को ताईवान में हुए विमान हादसे में नेताजी की मौत की बात कही गई थी. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि टोक्यो के रेंकोजी टेंपल में उनकी अस्थियां सुरक्षित रखी गई थी.
ताईवान में हुआ था हादसा
कमेटी ने माना था कि जब दूसरे विश्वयुद्ध में पश्चिमी शक्तियों के सामने जापान-इटली की हार का संकट मंडरा रहा था ऐसे में नेताजी ने दक्षिण एशिया से अपना संघर्ष रूस शिफ्ट करने की तैयारी शुरू की. मंचूरिया होते हुए रूस जाने के लिए 16 अगस्त 1945 को उन्होंने बैंकॉक छोड़ा. 17 अगस्त को वे साइगॉन से निकले. 18 अगस्त 1945 को ताईवान से गुजरते वक्त प्लेन क्रैश हो गया. विमान हादसे में बुरी तरह जल जाने के बाद रात में उन्हें ताईहोकू अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन उसी रात उनकी मौत हो गई.
नेताजी को पीएम ने दी श्रद्धांजलि
इससे पहले सुबह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी को जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि आज का दिन बहुत बड़ा दिन है क्योंकि नेताजी के बारे में फाइलें आज से सार्वजनिक होनी शुरू होंगी.
Remembering Netaji Subhas Chandra Bose on his birth anniversary. His bravery & patriotism endears him to several Indians across generations.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2016
Today is a special day for all Indians. Declassification of Netaji files starts today. Will go to National Archives myself for the same.
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2016
सस्पेंस से उठेगा पर्दा
फाइलों के सार्वजनिक होने से इन फाइलों को सुलभ कराने के लिए लंबे समय से चली आ रही जनता की मांग पूरी हुई है. यही नहीं, इससे नेताजी की मौत पर आगे और रिसर्च करने में भी सुविधा होगी.
From the pages of history...Proclamation issued by Netaji in 1944. pic.twitter.com/UokXkGw2xM
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2016
पिछले साल फाइलें सार्वजनिक करने की हुई थी घोषणा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 14 अक्टूबर को नई दिल्ली में अपने आवास पर नेताजी के परिवार के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई मुलाकात में घोषणा की थी कि भारत सरकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करेगी और उन्हें जनता के लिए सुलभ बनाएगी. बयान के अनुसार, 33 फाइलों की पहली खेप प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा सार्वजनिक की गई थी और 4 दिसंबर, 2015 को भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को सौंप दी गई थी. इसके बाद गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय ने भी अपने पास मौजूद संबंधित संग्रह में शामिल नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिन्हें बाद में भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को स्थानांतरित कर दिया गया.
आजाद हिंद फौज की 990 फाइलें 1997 में मिली थीं
बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार को साल 1997 में रक्षा मंत्रालय से इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) से संबंधित 990 फाइलें प्राप्त हुई थीं और वर्ष 2012 में खोसला आयोग (271 फाइलें) और न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग (759 फाइलें) से संबंधित कुल 1030 फाइलें गृह मंत्रालय से प्राप्त हुई थीं. ये सभी फाइलें सार्वजनिक रिकॉर्ड नियम, 1997 के तहत जनता के लिए पहले से ही उपलब्ध हैं.
हटेगा मौत के सस्पेंस से पर्दा
हाल ही में ब्रिटेन की वेबसाइट bosefiles.info ने दावा किया था कि सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु ताईवान में हुए प्लेन क्रेश में हुई थी. वेबसाइट ने अपने दावे को सही ठहराते हुए कथित चश्मदीदों के बयान भी जारी किए हैं.
इससे पहले भी नेताजी के जीवन के दूसरे पहलूओं, खासकर उनकी गुमशुदगी के दिनों को लेकर कई उद्भेदन करने वाली इस वेबसाइट का कहना है कि 18 अगस्त 1945 की रात को ही बोस का देहांत हुआ था. चश्मदीदों के तौर पर नेताजी के एक करीबी सहयोगी, दो जापानी डॉक्टर, एक एंटरप्रेटर और एक ताईवानी नर्स को शामिल किया गया है.
क्या कुछ लिखा है वेबसाइट ने अपने दावे में-
वेबसाइट में लिखा है कि सुभाष चंद्र बोस के सहायक कर्मी कर्नल हबीबुर रहमान ने हादसे के छह दिन बाद 24 अगस्त 1945 को एक लिखित और हस्ताक्षरित बयान दिया था. रहमान ने बयान में कहा, 'निधन से पहले बोस ने मुझसे कहा था कि उनका अंत समीप है. उन्होंने मुझसे उनकी ओर से यह संदेश देशवासियों को देने कहा था- मैं भारत की आजादी के लिए अंत तक लड़ा और अब मैं उसी प्रयास में अपना जीवन दे रहा हूं. देशवासी स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखें जबतक कि देश स्वतंत्र न हो जाए. आजाद हिंद जिंदाबाद.'
देहांत के बाद नर्स का बयान
मौत के एक साल बाद नर्स शान ने बयान दिया, 'जब उनकी मृत्यु हुई. मैं उनके पास ही थी. वह पिछले साल 18 अगस्त (1945 ) को चल बसे.' नर्स शान आगे कहती है, 'मैं सर्जिकल नर्स हूं और मैंने उनकी मृत्यु तक उनकी देखभाल की. मुझे निर्देश दिया गया था कि मैं उनके पूरे शरीर पर जैतून का तेल लगाऊं और मैंने ऐसा ही किया. जब कभी उन्हें थोड़ी देर के लिए होश आता, वह प्यास महसूस करते थे. कराहते हुए वह पानी मांगते थे. मैंने उन्हें कई बार पानी पिलाया.'
बुरी तरह जल चुका था शरीर
दुर्घटना के बाद बोस को जिस अस्पताल में भर्ती किया गया, उसके प्रभारी चिकित्सा अधिकारी जापानी सेना के कैप्टन तानेयोशी योशिमी थे. वे अकेले जिंदा गवाह हैं. डॉ. योशिमी ने पहले कई गवाहियां हांगकांग के स्टानली गाओल में 19 अक्टूबर 1946 को दीं, जहां उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जेल में डाल दिया था. इसे ताईवान के युद्ध अपराध संपर्क खंड के कैप्टन अल्फ्रेड टर्नर ने रिकॉर्ड किया. उन्होंने कहा, 'जब उन्हें बिस्तर पर लिटाया गया तब मैंने ही तेल से उनके (बोस के) शरीर का जख्म साफ किया और उनकी ड्रेसिंग की. उनका पूरा शरीर बुरी तरह जल चुका था. उनका सिर, छाती और जांघ गंभीर रूप से जले हुए थे. वह अधितकर बातें अंग्रेजी में कर रहे थे. इसके बाद एक एंटरप्रेटर को बुलाया गया.
अस्पताल में जापानी अधिकारियों ने दी सलामी
इसके बाद नाकमुरा नाम के एक एंटरप्रेटर को अस्पताल बुलाया गया. नाकमुरा ने बताया कि वह अक्सर सुभाष चंद्र बोस के लिए दुभाषिए के रूप में काम कर चुके हैं और उनकी उनसे कई बार बातचीत हो चुकी है. इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं जान पड़ा कि जिस व्यक्ति से वह बात कर रहे थे, वह सुभाष चंद्र बोस ही थे. नेताजी ने जुबान से कभी दर्द या पीड़ा की शिकायत नहीं थी. नेताजी का यह मानसिक संतुलन देख हम सभी दंग थे.' उन्होंने कहा कि बोस चल बसे और कमरे में जापानी अधिकारी एक कतार में खड़े हो गए. उन्होंने बोस के पार्थिव शरीर को सलामी दी.
...और रात 11 बजे चल बसे नेताजी
डॉ. योशिमी ने कहा, 'अस्पताल में भर्ती किए जाने के चौथे घंटे में ऐसा लगा कि उनकी हालत बिगड़ रही है. वह अपनी कोमा की दशा में कुछ फुसफुसाए, बड़बड़ाए, लेकिन वह कभी होश में नहीं लौटे. करीब रात ग्यारह बजे वह चल बसे.' डॉ. योशिमी 1956 में मेजर जनरल शाह नवाज की अगुवाई वाली नेताजी जांच समिति और 1974 में न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग में पेश हुए.