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इस मामले में आज भी आधुनिक नहीं हो पाया भारत, बड़े सुधार की जरूरत

21वीं सदी का भारत आर्थिक और नई सामाजिक ऊंचाईया जरूर छू रहा है लेकिन लिंगानुपात के मामले में देश अब भी पिछड़ता जा रहा है. महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा देश और प्रदेशों की सरकारों के लिए एक चुनावी मुद्दा तो जरूर रहता है लेकिन जमीन पर हालात नहीं बदल रहे हैं.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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सरकार लगातार देश में महिलाओं को सशक्त बनाने, बच्चियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने पर जोर देती आई है. मोदी सरकार की ओर से इसके लिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम भी लॉन्च किया गया, जिसका मकसद कन्या भ्रूण हत्या रोकना और बेटियों को आगे बढ़ाना है. बावजूद इसके लिंगानुपात में बच्चियों की संख्या में लगातार कमी आई है.

साल 1991 की जनगणना के मुताबिक प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 945 थी जबकि 2001 की जनगणना में यह आंकड़ा घटकर 927 ही रह गया. साथ ही 2011 की सबसे ताजा जनगणना में प्रति एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या और घटकर 919 ही रह गई.

21वीं सदी का भारत आर्थिक और नई सामाजिक ऊंचाईया जरूर छू रहा है लेकिन लिंगानुपात के मामले में देश अब भी पिछड़ता जा रहा है. महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा देश और प्रदेशों की सरकारों के लिए एक चुनावी मुद्दा तो जरूर रहता है लेकिन जमीन पर हालात नहीं बदल रहे हैं. लड़कियों को सामाजिक कुरीतियों की वजह से या तो भ्रूण में ही मार दिया जाता है या फिर कुपोषण और अन्य बीमारियों की वजह से उनकी मौत हो जाता है.

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हाल ही में पीएम मोदी ने नेवी के उस महिला चालक दल से मुलाकात की थी जो आईएनएस तारिणी से दुनिया का चक्कर लगाने जा रही हैं और यह पहली बार होगा जब नेवी का महिला दल समुद्री रास्ते दुनिया की परिक्रमा करेगा. पीएम ने कहा खा कि ऐसी बेटियों पर देश को गर्व है. लेकिन हमें ऐसी कई और बेटियां की जरूरत है और उसके लिए हमें लिंगानुपात के इन आंकड़ों में सुधार लाने की जरुरत है.

 

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