पड़ोस के शर्फू ने पूरे पड़ोस में आतंक मचा रखा है. मोहल्ले भर में हल्ला मचाता है जब पटाखे जलाता है. खुद भी जलता है, आग से खेलता है शर्फू. जबान से छूटी बात और बोतल से छूटा राकेट किसी के कंट्रोल में नहीं रहता, नॉन-स्टेट एक्टर हो जाता है. कभी शर्फू के खुद के घर में फट पड़ता है, कभी पड़ोसियों के.
अपने घर में भूजी भांग नहीं है, पर शर्फू के चचा अमीर हैं. चचा हर महीने पैसे भेजते हैं राशन के, शर्फू पटाखेबाजी में फूंक देता है. आदत ऐसी बिगड़ी है उसे अपनी छत का खयाल नहीं, मन्नू के फूस के छप्पर का ख्याल क्या ख़ाक होगा? इसी चक्कर में इक दिन मन्नू के फूस का छप्पर ख़ाक होगा, ये सोचकर मन्नू भनभनाए रहते. कई बार तो लगी भी, और बुझाने में मन्नू के पांव को पसीने आ गए.
मन्नू के पास दो ही रास्ते हैं: पहला शर्फू को कस के लगाए कान के नीचे. इक झन्नाट कि उसका वजूद ताउम्र सन्नाटे में रहे. दूसरा: शर्फू के चचा से शिकायत करे कि लगाम डालो अपने लाल पर, नहीं तो नीला-पीला कर देंगे इक रोज़.
मन्नू पहला रास्ता पकड़े तो दुनिया कहेगी बड़ा होकर भी बच्चे पे हाथ उठाता है. पटाखों से पहले ही हाथ जला है बेचारे का. एक आंख पहले ही अनार ने छीन ली. सुतली ने दाएं हाथ का अंगूठा, चूसने की उम्र में. च.. च… च… बच्चा है, अभी कच्चा है. लौंडे को समझा भी तो सकते थे.
मन्नू ने दूसरा रास्ता चुना. पंचायत की बैठक में शर्फू के चचाजान मिल गए सो उनको ताकीद कर दी. आपके पैसे उड़ाए हमारी बला से, पर अपने भतीजे को चेता दो. उसके राकेट जहां-तहां गिरते हैं. कल रात भी ऐसा हुआ. यूं आतंक मचा रखा है कि आजिज़ आ गए हैं हम. अगली बार शायद उसकी उम्र का और आपके रिश्ते का लिहाज़ ना रहे. समझा दीजिएगा उसको.
बात गांव में आग की तरह फ़ैल गई कि मन्नू और शर्फू के चचा कुछ बतिया रहे थे. ये बात जब टिंकू और रिंकी ने शर्फू को बताई, तो डरने की बात दूर, उसने तो इसे हल्के में लिया. ये मन्नू तो देहाती औरत की तरह निकला जो अपने मरद से लड़ती है और मुखियाजी से अपना दरद शेअर करती है. हमरे चचा से शिकायत लगाता है, हमसे कह के देखे.
'शर्फू की ये मजाल कि राकेट भी दागे और ताने भी', ये कहते हुए भड़क गए छन्नू, जो पंचायत के मुखिया का चुनाव लड़ने वाले हैं, और मन्नू जिनको फूटी आंख ना सुहाया अब तक. 'हम मन्नू को चाहे जितना गरियायें, लतियाएं पर हमारा भाई है. उस लौंडे की इतनी औकात कि हमरे निकम्मे भाई को चिढ़ाए.'
शर्फू के आतंक से पीड़ित लोग चंदू को चढ़ा रहे हैं, उसके सीने की चौड़ाई को छप्पन बता रहे हैं. चंदू के विरोधी चंदू पर पटाखे की आग पर रोटियां सेंकने का इलज़ाम लगा रहे हैं. मामला चुनावी हो गया है. पटाखे और छप्पर के लेवल से ऊपर चला गया है. भय, भूख, भ्रष्टाचार, चंदू के राकेट, मन्नू के फूस का छप्पर… या सब मसले नहीं हैं… मुद्दे हैं. पोस्टरों पर सजने के लिए, भाषणों में भजने के लिए. वन्दे मातरम्. सोने की चिड़िया, डेंगू मलेरिया, गुड़ भी है, गोबर भी. भारत माता की जय.