दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए मुख्यमंत्री को दिल्ली का असली बॉस बताया है. कोर्ट ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली में फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, एलजी को कैबिनेट की सलाह के अनुसार ही काम करना होगा.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए. पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा दिल्ली विधानसभा कोई भी कानून बना सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को भी पूरी तरह से उलट दिया है, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस बताया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया था
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने फैसले में दिल्ली के उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस बताया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने 4 अगस्त 2016 को सुनवाई करते हुए कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं. दिल्ली सरकार एलजी की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती.
एलजी दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए किसी भी तरह से बाध्य नहीं हैं. वह अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं, जबकि दिल्ली सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की सहमति लेनी ही होगी.
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. पांच जजों की संविधान पीठ ने 6 दिसंबर 2017 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया
फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए. पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा दिल्ली विधानसभा कोई भी कानून बना सकती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि दिल्ली में किसी तरह की अराजकता की कोई जगह नहीं है, सरकार और एलजी को साथ में काम करना चाहिए. दिल्ली की स्थिति बाकी केंद्र शासित राज्यों और पूर्ण राज्यों से अलग है, इसलिए सभी साथ काम करें.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान का पालन सभी की ड्यूटी है, संविधान के मुताबिक ही प्रशासनिक फैसले लेना सामूहिक ड्यूटी है.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच भी सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए. राज्यों को राज्य और समवर्ती सूची के तहत संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने का हक है.