दिल्ली की एक अदालत ने शरीयत कानून का हवाला देते हुए एक मुस्लिम व्यक्ति को इसी धर्म की एक नाबालिग लड़की को अवैध रूप से कैद रखने और उससे बलात्कार करने के आरोप से दोषमुक्त कर दिया.
शरीयत कानून 15 वर्षीय लड़की को अपने अभिभावकों की मर्जी के बिना निकाह करने की इजाजत देता है. आरोपी पर भारतीय दंड संहिता के तहत नाबालिग को अवैध रूप से कैद में रखने और उससे बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था. भारतीय दंड संहिता में बलात्कार के संदर्भ में लड़की को 16 साल की होने तक नाबालिग माना गया है और तब तक लड़की की मर्जी के बावजूद उससे शारीरिक संबंध बनाना एक अपराध है जिसके लिए अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश इला रावत ने व्यक्ति को आरोपों से बरी करते हुए कहा, ‘लड़की और आरोपी दोनों धर्म से मुस्लिम हैं. यद्यपि अभियोक्त्री भारतीय बहुसंख्यक कानून या भारतीय दंड संहिता के कुछ प्रावधानों के अर्थ के अनुसार नाबालिग हो लेकिन उसके वर्तमान कानून के तहत वह 15 वर्ष की आयु पूरी करके अपने अभिभावकों की मर्जी के बिना भी आरोपी से विवाह कर सकती थी. वर्तमान मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि अभियोक्त्री ने आरोपी से अपने अभिभावकों की मर्जी से विवाह किया.’
अदालत ने साथ ही कहा कि लड़की जब गत वर्ष अपनी इच्छा से आरोपी के साथ भागी तब वह बालिग होने वाली थी. दोनों के प्रेम प्रसंग के मामले की उसके अभिभावकों को भी जानकारी थी. अदालत ने कहा कि लड़की को ना तो रोका गया था और ना ही जबर्दस्ती कैद में रखा गया था. दोनों ने प्राथमिकी दर्ज होने के बाद विवाह कर लिया. अदालत ने कहा कि शरीयत कानून 15 वर्षीय लड़की से विवाह को अपराध नहीं मानता. अभियोजन पक्ष के अनुसार लड़की और उसकी मां ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज करायी थी कि व्यक्ति ने गत वर्ष उससे उसके घर में उस समय बलात्कार किया था जब वह अकेली थी.
अभियोजन के अनुसार आरोपी ने लड़की को यह भी धमकी थी कि वह इस घटना का जिक्र किसी से ना करे नहीं तो वह उसकी और उसके पूरे परिवार की हत्या कर देगा. उसके बाद उसने उसके साथ कई बार बलात्कार किया.
लड़की ने हालांकि अदालत को बताया कि वह व्यक्ति से प्यार करती थी और दोनों विवाह करना चाहते थे लेकिन उसकी मां इस पर सहमत नहीं थी.