दिल्ली हाईकोर्ट ने कई साल से लंबित पड़े एक मर्डर केस का निपटारा महज 30 मिनट में कर दिया. जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और मुक्ता गुप्ता की पीठ ने अब्बू नाम के शख्स की ओर से 2011 में दायर की गई अर्जी पर सुनवाई की और महज 30 मिनट में अपना फैसला सुना दिया.
बेंच ने अब्बू पर लगे मर्डर के आरोप को गैर-इरादतन हत्या में तब्दील कर दिया और तत्काल प्रभाव से उसकी रिहाई के भी आदेश दे दिए. हालांकि, यह संभव इसलिए हो सका क्योंकि इस केस में पेंचीदगियां कम थीं. ना ही इसमें लंबी सुनवाई की जरूरत थी और ना ही सबूतों के अंबार की.
आपको बता दें कि केस में फैसला सुनाने वाले जस्टिस नंदराजोग दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा कि हाईकोर्ट में लंबित पड़े ऐसे ही क्रिमनल केसों की पहचान कर उनका जल्द निपटारा किया जा सकता है. ऐसा करने से लंबित पड़े करीब 1400 क्रिमनल केसों पर से दबाव कम होगा.
क्या है मामला?
सरकारी वकील के मुताबिक, 1 मई 2010 की रात को अब्बू और उसका एक दोस्त मोरी गेट इलाके पहुंचे. वहां वे अपने दोस्त मोटा से मिलने गए थे जो उस वक्त नशा कर रहा था. अब्बू और मोटा के बीच किसी बात को लेकर बहस हो गई जो जल्द ही झगड़े में तब्दील हो गई. इस दौरान अब्बू ने मोटा पर पेपर कटर से हमला कर दिया. जब मोटा ने भागने की कोशिश की तो अब्बू और उसके दोस्त ने मिलकर उसे घसीटकर कमरे में ले आए और एक बार फिर उसकी पिटाई की. ज्यादा खून बहने की वजह से बाद में मोटा की मौत हो गई. ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में अब्बू को दोषी पाया और उसे मोटा की हत्या के आरोप में सजा सुनाई. इस फैसले के उलट हाईकोर्ट ने पाया कि झगड़े के दौरान आरोपी अब्बू को भी गंभीर चोटें आई थीं. हाईकोर्ट ने कहा कि अब्बू पर भी हमला किया गया था.
बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'यह अचानक हुए एक झगड़े का नतीजा था. यह दो शख्सों के बीच की लड़ाई थी जिस दौरान दोनों ने एक-दूसरे को जख्मी किया.अब्बू को मर्डर का दोषी नहीं माना जा सकता. जो उसने किया वह गैर-इरादतन हत्या का मामला है, उसे आईपीसी की धारा 304 के तहत दोषी पाया जाता है.'