केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा कई महत्वपूर्ण पदों पर आसीन शख्सियतों की फोन टेपिंग को लेकर दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका लगाई गई है. इस याचिका में सवाल उठाया गया है कि कैसे सीबीआई जैसी एजेंसी किसी व्यक्ति का फोन टेप कर सकती है? खासतौर से जब यह बातचीत देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई हो. इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है.
हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को नोटिस जारी कर इस मामले में कोर्ट में अपना पक्ष रखने को कहा है. इसके लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा कि सीबीआई के पूर्व प्रमुख आलोक वर्मा ने गलत तरीके से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और कुछ और उच्च अधिकारियों का फोन टेप किया जो पूरी तरफ से गैरकानूनी हैं.
यह याचिका सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा के कार्यकाल में हुई फोन टेपिंग पर सवाल खड़ा कर रही है. हालांकि याचिकाकर्ता ने इस मामले में पूर्व सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को पार्टी तो नहीं बनाया है, लेकिन उनके कार्यकाल में हुए फोन टेपिंग को लेकर यह याचिका कई गंभीर सवाल खड़े करती है जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रख पूर्व निदेशक सीबीआई ने मनमानी करते हुए बिना इजाजत के कॉल रिकॉर्ड किए.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी कि पूर्व डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके कुछ साथी बड़े भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं और अपने निजी हितों के लिए बड़े अफसरों के कॉल टेप किए. लिहाजा इस याचिका में विशेष जांच दल से इस मामले की जांच कराने की दिल्ली हाई कोर्ट से मांग की गई है.
फिलहाल आलोक वर्मा सीबीआई डायरेक्टर नहीं हैं. ऐसे में 4 हफ्ते के भीतर सीबीआई की तरफ से कोर्ट में आने वाला जवाब बेहद महत्वपूर्ण होगा, खासतौर से तब जब राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा के बीच की लड़ाई सार्वजनिक होकर कोर्ट तक आ चुकी है. इस लड़ाई में दोनों पक्षों की तरफ से एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. हाई कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 26 मार्च को होगी.