मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से पूछा है कि अगर ऐसी ही याचिका पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही सुनवाई कर रहा है तो फिर हाइकोर्ट मे सुनवाई की क्या ज़रूरत है. लिहाजा इस पर सुनवाई की ज़रूरत नहीं है, अगर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका उन्ही बिंदुओं पर है.
हाइकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप केस पर बहस कर रहे वकीलों को अगली सुनवाई पर हाइकोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं, ताकि साफ हो सके की मैरिटल रेप मे सुप्रीम कोर्ट मैरिटल रेप से जुड़ी जिस याचिका पर सुनवाई कर रहा है उसमें कोर्ट में किन बिन्दुओं पर सुनवाई हो रही है. बता दें कि इस याचिका पर हाइकोर्ट अगली सुनवाई 8 सितंबर को करेगा.
इससे पहले हुई सुनवाई के दौरान इस मामले में याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील कोलिन गोंजाल्विस ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि शादी का यह मतलब नहीं है कि औरतों को दास बना दिया जाए. नेपाल जैसे देश में भी सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में यह साफ कर दिया था कि अगर शादी के बाद कोई व्यक्ति अपनी बीवी का बलात्कार करता है तो यह उस महिला की स्वतंत्रता का हनन है. इस मामले में याचिकाकर्ता ने आज कोर्ट को कई यूरोपियन देशों के सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी मैरिटल रेप पर पढ़ कर सुनाए जिसमें यूएस कोर्ट से लेकर नेपाल की सुप्रीम कोर्ट तक शामिल थी.
याचिकाकर्ता के इन तर्कों के बाद कोर्ट ने टिप्पणी की कि फिलिपींस जैसे देशों में वहां के सुप्रीम कोर्ट ने भी शादी के बाद जबरन सैक्स को अपराध की श्रेणी में बरकरार रखा है.
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार मैरिटल रेप को अपराध घोषित किए जाने का विरोध कर रही है. दिल्ली हाईकोर्ट में कई अर्जी दाखिल कर उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ रेप को अपराध नहीं माना जाएगा. इस प्रावधान को कई NGO ने गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने की गुहार लगाई थी.
केन्द्र सरकार की ओर से एक हलफनामा दाखिल करके कोर्ट को बताया गया है कि धारा 498 के तहत पुरूषों का उत्पीड़न बढ़ सकता है. याचिका में एनजीओ की ओर से कहा गया है कि कई कानून है जिसमें महिलाओं को प्रोटेक्शन मिला हुआ है और नए कानून की जरूरत नहीं है. केन्द्र सरकार ने कहा है कि देश में अशिक्षा, आर्थिक रूप से महिलाओं की कमजोर स्थिति, समाज की मानसिकता और गरीबी अहम कारण हैं.