निर्भया गैंगरेप के चारों दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने का पूरा देश इंतजार कर रहा है. चार दोषियों में से एक गुनहगार पवन को मंगलवार को तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया है. इससे पहले वह मंडोली जेल में बंद था. पवन के अलावा बाकी तीनों दोषी (मुकेश, अक्षय, विनय) पहले से ही तिहाड़ में बंद हैं. अब सवाल उठता है कि क्या इन्हें एक साथ फांसी दी जाएगी, अगर ऐसा होता है कि तो यह पहली बार नहीं होगा. इससे पहले भी आजाद भारत के इतिहास में एक साथ चार लोगों को फांसी पर लटकाया जा चुका है.
दिसंबर 2012 में राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया कांड के चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है और अब उस दिन का इंतजार किया जा रहा है जब उसे फांसी पर लटकाया जाएगा. हालांकि इस बीच निर्भया गैंगरेप के दोषी अक्षय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है.
अभी तय नहीं है कि इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट कब सुनवाई करेगा. अक्षय को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनवाई है, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
सारे कानूनी रास्ते बंद
इन चारों को फांसी के फंदे पर लटकने के सारे कानूनी रास्ते बंद हो चुके हैं, अब बस एक रास्ता बचा है जिसकी अर्जी राष्ट्रपति के पास है. लेकिन वहां से रहम की उम्मीद नहीं के बराबर है. राष्ट्रपति भवन से कभी भी दया याचिका खारिज हो सकती है. और जैसे ही याचिका खारिज होती है, इन चारों के नाम पटियाला हाउस कोर्ट से ब्लैक वारंट जारी कर दिया जाएगा. ब्लैक वारंट यानी मौत का आखिरी पैगाम.
तिहाड़ में कैद निर्भया के दोषियों को फांसी पर लटकाए जाने की कवायद शुरू हो चुकी है. तिहाड़ जेल 1945 में बनना शुरू हुआ था और 13 साल बाद 1958 में बनकर तैयार हो गया. ब्रिटिशराज में ही तिहाड़ के नक्शे में फांसी घर का भी नक्शा बना लिया गया था. उसी नक्शे के हिसाब से फांसी घर बनाया गया जिसे अब फांसी कोठी कहते हैं. यह फांसी कोठी तिहाड़ के जेल नंबर तीन में कैदियों की बैरक से बहुत दूर बिल्कुल अलग-थलग सुनसान जगह पर है.
जेल नंबर तीन में फांसी कोठी
तिहाड़ के जेल नंबर तीन में जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी है, उसी बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल बनाए गए हैं. डेथ सेल में सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सजा मिली होती है. डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है. डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु की स्पेशल पुलिस करती है.
तिहाड़ की फांसी कोठी में पहली और आखिरी बार एक साथ दो लोगों को फांसी 37 साल पहले 31 जनवरी 1982 को रंगा-बिल्ला को दी गई थी. हालांकि तिहाड़ में चार लोगों को एक साथ फांसी कभी नहीं दी गई.
कब हुई एक साथ चार की फांसी
लेकिन निर्भया के गुनहगारों की तादाद चार है. देखना होगा कि इस बार इन्हें किस तरह से फांसी दी जाती है.
हालांकि इससे पहले भी देश में चार लोगों को एक साथ फांसी दी जा चुकी है. एक साथ चार लोगों को फांसी पुणे की यरवदा जेल में दी गई थी.
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27 नवंबर 1983 को जोशी अभयंकर केस में दस लोगों का कत्ल करने वाले चार लोगों को एक साथ फांसी दी गई थी. तो क्या इस बार निर्भया के चारों गुनहगारों को भी एक साथ तिहाड़ में फांसी दी जा सकती है?
जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच पुणे में राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कान्होजी जगताप और मुनव्वर हारुन शाह ने जोशी-अभयंकर केस में दस लोगों की हत्याएं की थीं. ये सभी हत्यारे अभिनव कला महाविद्यालय, तिलक रोड में व्यवसायिक कला के छात्र थे, और सभी को 27 नवंबर 1983 को उनके आपराधिक कृत्य के लिए एक साथ यरवदा जेल में फांसी दी गई थी.