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'पुलिस ने सरकार के आदेश पर 1984 के दंगाइयों को नहीं रोका'

एक समाचार पोर्टल ने एक स्टिंग ऑपरेशन में आज दावा किया कि सरकार 1984 के सिख विराधी दंगों को रोकने के लिए कदम उठाने में नाकाम रही और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सिखों को सबक सिखाने के लिए तत्कालीन सरकार के साथ साठगांठ की.

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दंगों के समय ऐसे मची थी तबाही
दंगों के समय ऐसे मची थी तबाही

एक समाचार पोर्टल ने एक स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया कि सरकार 1984 के सिख विराधी दंगों को रोकने के लिए कदम उठाने में नाकाम रही और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सिखों को सबक सिखाने के लिए तत्कालीन सरकार के साथ साठगांठ की.

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स्टिंग में दिल्ली पुलिस के अधिकारियों की स्वीकारोक्ति का दावा किया गया है जिनमें से अधिकतर अधिकारियों ने स्टिंग में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में एक बल के रूप में अपनी नाकामी स्वीकार की है. स्टिंग में कल्याणपुरी के तत्कालीन थाना प्रभारी (एसएचओ) शूरवीर सिंह त्यागी, दिल्ली छावनी के एसएचओ रोहतास सिंह, कृष्णा नगर के एसएचओ एसएन भास्कर, श्रीनिवासपुरी के एसएचओ ओपी यादव और महरौली के एचएचओ जयपाल सिंह की बातचीत रिकॉर्ड है.

समाचार पोर्टल ने दावा किया है कि तत्कालीन पुलिस प्रमुख एससी टंडन ने आसानी से सभी सवालों को टाल दिया जबकि तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त गौतम कौल ने इस बात को ही खारिज कर दिया कि उन्हें दंगों की सीधे तौर पर कोई जानकारी थी. दावा किया गया है कि इन अधिकारियों की स्वीकारोक्ति खुलासा करती है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने सिखों के खिलाफ साम्प्रदायिक भावनाएं धीरे-धीरे भड़कने की चेतावनियों को अनसुना किया और पुलिस नियंत्रण कक्ष को मिलने वाले आगजनी एवं दंगों के समाचारों के केवल दो प्रतिशत संदेशों को ही दर्ज किया गया.

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पुलिसकर्मियों को था तबादले का डर
साथ ही यह भी दावा किया गया कि वरिष्ठ अधिकारियों के कार्रवाई नहीं करने के सबूतों को मिटाने के लिए लॉगबुक को सुविधाजनक तरीके से बदला गया जबकि कुछ अन्य अधिकारियों ने तबादला होने की सजा मिलने के डर से कार्रवाई नहीं की.  सरकार ने पुलिस को कार्रवाई करने की इजाजत नहीं दी और यह धारणा बनाई कि पुलिस अपना काम नहीं कर रही थी.

इंदिरा की जयकार लगाने वालों पर कार्रवाई नहीं
पोर्टल ने दावा किया कि इन अधिकारियों की स्वीकारोक्तियों के अनुसार कुछ पुलिस अधिकारियों ने दंगों संबंधी अपराधों को कम करने के लिए पीड़ितों के शव कहीं और फेंक दिए तथा पुलिस को निर्देश देते हुए संदेश प्रसारित किए गए कि वह उन दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करे जो इंदिरा गांधी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे.

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