आम आदमी पार्टी ऐतिहासिक जीत से दिल्ली में नया इतिहास रच रही है. उम्मीद से ज्यादा सीटें आपके खाते में आ रही हैं. मगर उन लोगों का क्या जो मोदी लहर से उत्साहित होकर बीजेपी में शामिल हुए थे. पहले दल बदला, फिर हर जुगाड़ लगाया. मुश्किल से बीजेपी टिकट पाया. लेकिन हार गए...किसी ने सोचा नहीं था.
दिल्ली के इस चुनाव में बीजेपी ने पंद्रह फ़ीसदी से ज़्यादा सीटें बाहर से आए नेताओं को दी थी. इनमें किरण बेदी का नाम सबसे अहम था. क्योंकि उन्हें पार्टी में आने के दो दिन बाद ही सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था. किरण बेदी भी एक सीएम की तरह बातें करती नजर आ रहीं थी. उनके हाव-भाव ऐसे लगने लगे थे कि मानो वह मुख्यमंत्री बन गई हों. मगर चुनाव के नतीजे आते-आते उनका चेहरा भी उतर गया. और वह खुद भी चुनाव हार गई. शायद उन्हें इस बात का मलाल हो रहा होगा कि उन्हें केजरीवाल का ऑफर मान लेना चाहिए था. जो उन्होंने पिछले चुनाव से पहले उन्हें दिया था कि वे आम आदमी पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार बन जाएं.
ऐसा ही कुछ हाल होगा कांग्रेस छोड़ कर आईं कृष्णा तीरथ का. यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री रही तीरथ को टिकट दिया जाना बीजेपी नेताओं को हैरान कर रहा था. तीरथ को आते ही पटेल नगर सीट से उम्मीदवार बना दिया गया. तीरथ भी बड़ी उम्मीद के साथ भाजपा में आईं थी. मगर उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि बीजेपी को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ेगा. और वे खुद भी हार जाएंगी.
बीजेपी ने आप के पूर्व एमएलए बिनोद कुमार बिन्नी को भी टिकट दिया था. आम आदमी पार्टी की सरकार में मंत्री न बनाए जाने से नाराज रहे बिन्नी पटपड़गंज से आप नेता मनीष सिसौदिया के मुकाबले चुनाव लड़े. बीजेपी में आने के बाद बिन्नी ने केजरीवाल और उनकी टीम पर कई आरोप लगाए थे. मोदी और बीजेपी की तारीफ में कसीदे पढ़ें थे. मगर ऐसी करारी हार की उम्मीद शायद ही बिन्नी ने की हो.
इसी तरह बीजेपी ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी को दर किनार कर बाहर से आए कई और नेताओं को टिकट दिया था. उनमें एमएस धीर को जंगपुरा से, शकील अंजुम देहलवी को मटिया महल से और ओखला से ब्रह्म सिंह विधूड़ी को भी टिकट दिया गया था. ये सभी जीत का सपना लेकर बीजेपी के साथ आए थे. दिन रात मेहनत की. पैसा खर्च किया. मोदी का गुणगान किया. लेकिन अफसोस चुनाव हार गए. अब पछताने के सिवा और कुछ नहीं बचा.
एक नेता ऐसी भी थीं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि वो ना तो इधर की रही और ना उधर की. वह थी शाजिया इल्मी. वह लम्बे समय तक आम आदमी पार्टी की अहम सदस्य रहीं. लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भी बीजेपी का दामन थाम लिया था. बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. शायद आप के साथ होती तो आज विधायक होतीं. इस बात का अफसोस तो उन्हें होगा या शायद इस बात से राहत भी कि अच्छा हुआ जो चुनाव नहीं लड़ा.