नोटबंदी के एलान के वक्त सरकार ने जोरशोर से दावा किया था कि ये कदम ‘लेस-कैश’ इकोनॉमी की दिशा में बड़ी छलांग है और इससे डिजिटल इंडिया की बुनियाद मजबूत हुई है. ये दावा भी किया गया था कि इससे काला धन बाहर आएगा. जिन लोगों ने पैसा इधर-उधर रखा हुआ था, वो सब बाहर निकालने को मजबूर हो गए. आखिर कितनी सच्चाई है इन दावों में?
पहले बात की जाए कैश लेस लेनदेन की. भारतीय रिजर्व बैंक की संस्था नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) देश में होने वाले सभी तरह के डिजिटल भुगतान की निगरानी रखने वाली सबसे बड़ी संस्था है. NPCI के आंकड़ों के मुताबिक नोटबंदी के बाद देश डिजिटल ट्रांजेक्शन को बहुत तेजी से अपना रहा है. मसलन-
- साल 2017 -2018 में अक्टूबर तक ही डिजिटल ट्रांजेक्शन 1000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. बढ़ोतरी की रफ्तार का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष 2016 - 2017 में कुल मिलाकर इतना डिजिटल ट्रांजेक्शन हुआ था. अनुमान है मौजूदा वित्त वर्ष खत्म होने तक डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ कर 1800 करोड़ रुपए हो जाएगा.
- डिजिटल इकोनॉमी की दिशा में NPCI का बनाया हुआ UPI ( United payment Interface) बहुत कारगर साबित हुआ है. UPI डिजिटल पेमेंट के लिए लोगों का पसंदीदा प्लेटफार्म बन गया है. बैंक से लेकर e Wallet तक, सब UPI को तेजी से अपना रहे हैं. अब तक NPCI के अपने ऐप BHIM के अलावा 57 बैंक इससे जुड चुके हैं.
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- अक्टूबर 2017 में ही UPI से होने वाले लेन देन का आंकडा 7 करोड 70 लाख तक पहुंच गया था. इसके एक महीने पहले यानी सितंबर में सिर्फ 3 करोड 90 लाख लोगों ने UPI के जरिए लेन देन किया था. इसकी एक बडी वजह दीवाली के दौरान लोगों की ऑनलाइन खरीदारी थी. इस साल UPI के जरिए अब तक 7057 करोड़ का लेन देन हो चुका है जो पिछले साल के मुकाबले 32 फीसदी ज्यादा है.
- नोटबंदी के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब लोग कम कैश के साथ जीने की आदत डाल रहे हैं. नोटबंदी के समय जितनी नगदी लोगों के हाथों में थी, साल भर बाद भी उसका सिर्फ 88 फीसदी ही लोगों के हाथों में है.
- लोग अब कार्ड का इस्तेमाल भी ज्यादा कर रहे हैं. पिछले एक साल में कार्ड से होने वाले लेन देन में 60 फीसदी का इजाफा हुआ है और प्वांइट ऑफ सेल मशीन की संख्या में 78 फीसदी का इजाफा हुआ है.
- हालांकि तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. डिजिटल इंडिया की बुलंद तस्वीर दिखाने वाले इन आंकड़ों के बीच सरकार के लिए चिंता की बात ये भी है कि नोटबंदी के बाद नोटों की किल्लत की वजह से जो लोग डिजिटल तरीके से लेन-देन कर रहे थे, उनमें से बहुत से लोग फिर से कैश की ओर लौट भी रहे हैं. नोटबंदी के ठीक बाद और अब के आंकडों को देखें तो कैशलेस तरीके से लेने देन करने वालों की संख्या भी घट गयी और लेनदेन की वैल्यू भी.
- यही नहीं, सरकार के तमाम दावों के पीछे ये सच्चाई भी छिपी हुई है कि भारत में लोग नगदी का मोह नहीं छोड पा रहे हैं. देश में लगभग 1,31,81,190 करोड नगदी है जिससे लेन-देन हो रहा है. डिजिटल लेन देन के सारे तरीकों को जोड़ कर भी देखा जाए तो ये कुल लेन देन के 5 फीसदी से भी कम है. यानी भारत में अभी भी 95 फीसदी काम काज कैश से ही चल रहा है.
- भारत में 70 करोड लोगों के पास डेबिट कार्ड है और 3 करोड़ लोगों के पास क्रेडिट कार्ड है लेकिन असल में इनका इस्तेमाल करने वालों की संख्या बहुत कम है.
- आखिर इंडिया के कैश लेस इकॉनामी होने के रास्ते में अडचन क्या है? सबसे बडी ई-वॉलेट कंपनी पेटीएम के वाइस प्रेसिडेंट किरण वासीरेड्डी कहते हैं कि भारत में लोगों को कैश की आदत पड़ी हुई है, लोगों को ये सबसे ज्यादा भरोसेमंद लगता है. इस आदत को बदलने में समय लगेगा.
- तमाम जानकारों का ये भी मानना है कि कैश लेश बनने की होड में अचानक इतने तरीकों की बाढ़ आ गयी है कि लोग ऊहापोह में हैं. दर्जनों ई-वॉलेट, भीम, यूपीआई, आधार पे, नेट बैंकिग, पचासों तरह के बैंकों के अपने ऐप लोगों का काम आसान करने के बजाय उनकी उलझन बढा रहे हैं.
- बड़ी संख्या में लोगों के पास कैशलेस इकोनॉमी का हिस्सा बनने के लिए इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. कई के पास डेबिट कार्ड तो हैं लेकिन उनको इस्तेमाल करने के लिए POS मशीन नहीं है. बहुत से लोगों को ये इस्तेमाल करना नहीं आता और वे कैश को सबसे ज्यादा सुविधाजनक मानते हैं.
- कैशलेस इकोनॉमी में लोगों को सबसे बड़ी आशंका अपने धन की सुरक्षा को लेकर है. साइबर मामलों के विशेषज्ञ पवन दुग्गल बताते हैं कि कैशलेश तरीके में लोगों को सबसे ज्यादा डर इस बात का लगता है कि अगर कोई गड़बड़ हो गयी तो उनकी कोई सुनने वाला नहीं होगा. दुग्गल के मुताबिक नोटबंदी के बाद जितनी तेजी से कैशलेश लेन देन की संख्या बढ़ी उससे भी तेजी से साइबर क्राइम बढा है. वो कहते हैं कि बिना सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किए और जरूरी इंफ्रांस्ट्रक्चर के कैशलेस इकोनॉमी के बारे में सोचना बड़ी भूल है.
- दुग्गल कहते हैं कि एक बार डिजिटल लेनदेन में कोई गड़बड़ हो जाए तो लोग अपना पैसा वापिस पाने के लिए इधर उधर भटकते हैं लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं होता. ई-वॉलेट से लेकर भीम, यूपीआई और बहुत से बैंकों के हेल्पलाइन की सर्विस बेहद खराब है.
- खुद भारत सरकार से भीम ऐप पर लोगों की शिकायतों का निपटारा होने में बहुत समय लगता है और शिकायतों का जवाब समय पर नहीं दिया जाता.
- ऐसे में सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में 2500 करोड डिजिटल ट्रांजेक्शन का जो लक्ष्य रखा है वो नामुमकिन दिखता है.