यह जनादेश वादों को नहीं काम को दिया गया है. जेडीयू और बीजेपी गठबंधन की यह जीत एकदम चौंकाने वाली नहीं है वरण विपक्षी दलों की इतनी बुरी हार की अपेक्षा नहीं की गई थी.
15 साल तक लालू प्रसाद यादव ने बिहार को बिना खाने के केवल वादों की खुराक दी. नीतीश ने बहुत वादे नहीं किए लेकिन उन्होंने काम करके दिखाया. आरजेडी, लोजपा और कांग्रेस की इतनी बुरी हार ना केवल उनके प्रति लोगों के विश्वास में कमी दिखलाती है बल्कि नीतीश के खिलाफ एक मजबूत विकल्प की भी कमी को भी दिखाती है.
हालांकि सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी के प्रयास नीतीश के जश्न में थोड़ा खलल जरूर डाल सकते थे, लेकिन ऐसा हो न सका क्योंकि अब तक बिहार के लोगों ने कांग्रेस को आरजेडी के घटक के रूप में देखा था, जो अब उनसे किनारा कर चुके हैं. एनडीए की रणनीति बहुत सूझबूझ वाली थी और यह काम कर गई. चुनाव प्रचार में यह कहा गया कि यदि आप नीतीश को वोट नहीं करते हैं तो लालू नामक बड़ा भेडि़या फिर आपको डराने के लिए आ जाएगा. वहीं लालू ने वोटरों को याद दिलाया कि नीतीश को दिया गया हर वोट सांप्रदायिक बीजेपी का वोट होगा.
यह सच्चाई है कि इस बार मुस्लिमों ने नीतीश पर विश्वास जताया और एनडीए को वोट दिया. इसके बाद बीजेपी के पास सोचने का एक मौका है और अपने राजनीतिक एजेंडा में थोड़ी तब्दीली़ कर वह अपनी सांप्रदायिक छवि को कम करके कांग्रेस के खिलाफ इस्तेमाल कर सकती है. पिछले कुछ सालों में दिल्ली और कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में मिली एक के बाद एक हार के बाद बिहार की यह जीत बीजेपी की बंजर जमीन में बारिश का काम करेगी.
कांग्रेस ने एनडीए को दूर और सांप्रदायिक वोट को पाने के लिए पूरे 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन असल में वो एंटी-एनडीए वोट काटते हुए यह नीतीश को मदद कर गया. वहीं नीतीश ने अपने प्रचार में केवल विकास का सुर अलापा और उनकी सरकार ने जो कानून-व्यवस्था को लेकर बेहतरीन काम किए थे उसको लेकर मतदाताओं ने उनका साथ दिया. नीतीश ने बिहार को रहने के लिए सुरक्षित जगह बनाया. अब राज्य की जनता विकास की राह में उनसे और अपेक्षा करती है.